Juna Akhaada Ek Prichay: जूना अखाड़ा एक परिचय...
हमनें हमारे पिछले लेख- नागा साधु नागा संन्यासिनी के माध्यम से जाना था कि- नागा साधु नागा संन्यासिनी कैसे बनते हैं? पुरूष नागा साधुओं से कितनी अलग होती हैं महिला नागा संन्यासिनी? नागा संन्यासी का नाम कैसे तय होता हैं? भारत में सबसे बड़ा अखाड़ा कौनसा हैं और जाना कि भारतवर्ष में कितने प्रकार के अखाड़े होते हैं इस क्रम को आगें बड़ाते हुयें आज हम- श्री जूनादत्त या जूना अखाड़ा के बारें में विस्तृत रूप से जानेंगे तो आयें जानतें हैं- भारतवर्ष का इतिहास पांच हजार वर्ष पुराना हैं इस भारत भूमि में बहुत बड़े संत, ज्ञानी और महापुरुष हुए हैं इन्हीं में से एक थें "आदि गुरु शंकराचार्य" जिन्होंने हिन्दू धर्म और भारत भूमि को बचाने के लिए अखाड़ों की परम्परा स्थापित की "जिसमें साधुओं को धर्म की शिक्षा के साथ साथ शस्त्र विद्या को भी सीखना अनिवार्य किया"।
Juna Akhaada Ek Prichay: जूना अखाड़ा एक परिचय...
1. जूना अखाड़े की स्थापना Establishment of Juna Akhaada:-
Juna Akhaada Ek Prichay: जूना अखाड़े की स्थापना सन् 1145 में उत्तराखण्ड राज्य के कर्णप्रयाग में हुईं थी। इस अखाड़े को भैरव अखाड़ा भी कहते हैं इस अखाड़े के ईष्ट अराध्य रुद्रावतराय दत्तात्रेय हैं इसका केंद्र वाराणसी के हनुमान घाट पर माना जाता हैं। हरिद्वार के माया मन्दिर के पास इनका आश्रम हैं। इस अखाड़े के नागा साधु जब शाही स्नान के लियें संगम की और बढ़ाते हैं तो मेले में आयें श्रद्धालुओं समेत पूरे विश्व की सांसे इस अद्भुत दृश्य को देखनें के लियें रूक जाती हैं । जूना अखाड़ा एक सबसे बड़ा अखाड़ा हैं इस अखाड़े में करीब-करीब पांच लाख से अधिक नागा साधु और महामंडलेश्वर संन्यासी गण हैं। इस अखाड़े में नागा साधु की संख्या अत्यधिक हैं। इस अखाड़े में अलग-अलग क्षेत्र के अनुसार महंत गण होते हैं जो कि अपने अपने क्षेत्र के अनुसार कार्य देखते हैं। श्री प्रेमगिरी जी महाराज इस अखाड़े के वर्तमान समय में अध्यक्ष हैं।
2. जूना अखाड़े की विशेषता Specialty of Juna Akhaada:-
Juna Akhaada Ek Prichay: शिव संन्यासी संप्रदाय के अंतर्गत ही दशनामी संप्रदाय भी जुड़ा हैं। दशनामी संप्रदाय { गिरी, सागर, पुरी, आश्रम, तीर्थ, वन, अरण्य } इन संप्रदाय के बारें में भी आगें के लेखों में हम आपको जानकारीयॉं उपलब्ध करवायेंगे इन सात अखाड़ो में से जूना अखाड़ा इन सभी संप्रदायों का विशेष अखाड़ा हैं। किसी भी अखाड़े में महामंडलेश्वर का एक विशेष स्थान होता हैं। जूना अखाड़े के "महामंडलेश्वर आचार्यं श्री अवधेशानंद गिरी जी" हैं वे ही आचार्यं महामंडलेश्वर या पीठाधीश्वर हैं जिन्होंने अब तक एक लाख संन्यासियों को दीक्षा प्रदान की हैं। इस अखाड़े की खास बात हैं कि सम्पूर्ण देश-विदेश में भक्त इस अखाड़े से जुड़े हुयें हैं जिनकी संख्या करोड़ों में बताईं जाती हैं।
3. जूना अखाड़े की खास प्रणाली क्या हैं What are the special systems of Juna Akhaada?
Juna Akhaada Ek Prichay: जूना अखाड़ा एक खास प्रणाली से जुड़ा हैं ये अखाड़ा एक पूरा समाज हैं जहाँ साधुओं के 52 परिवारों के सभी मुखियों की एक कमेटी बनाईं जाती हैं ये सभी अखाड़े के लियें सभापति का चुनाव करतें हैं, एक बार चुनें गयें सभापति का पद जीवन भर के लियें उसी का हो जाता हैं। ये चुनाव कुंभ मेले के दौरान ही होता हैं अखाड़े की चार मढ़ियां हैं अखाड़ो की चार मढ़ियों में महंत से लेकर कष्ट कौशल महंत और कोतवाल तक नियुक्त कियें जातें हैं। वर्तमान महामंडलेश्वर आचार्यं अवधेशानन्द जी महाराज का चुनाव सन् 1998 के कुंभ के दौरान किया गया था जो कि जीवनपर्यन्त तक रहेगा। इस अखाड़े में रायता पंच के सदस्यों का भी चुनाव किया जाता हैं जिन्हें चल सदस्य भी कहा जाता हैं इनका कार्यं अपने ईष्ट देवता की पूजा अर्चना करना और अखाड़े की रक्षा का कार्यं करना होता हैं।
4. जूना अखाड़ा कहाँ हैं Where is Juna Akhaada?
Juna Akhaada Ek Prichay: जूना अखाड़े की स्थापना सन् 1145 में उत्तराखण्ड राज्य के कर्णप्रयाग में हुईं थी। इस अखाड़े को भैरव अखाड़ा भी कहते हैं इस अखाड़े के ईष्ट अराध्य रुद्रावतराय दत्तात्रेय हैं इसका केंद्र वाराणसी के हनुमान घाट पर माना जाता हैं, हरिद्वार के माया मन्दिर के पास इनका आश्रम हैं।
CONCLUSION-आज हमनें हमारें लेंख- Juna Akhaada Ek Prichay: जूना अखाड़ा एक परिचय के माध्यम से जूना अखाड़े की स्थापना के बारे में जाना इसके साथ ही साथ जूना अखाड़े की विशेषता, अखाड़े की खास प्रणाली, जूना अखाड़ा कहा स्थित हैं, इन सभी बिंदुओं के माध्यम से विस्तृत रूप से जूना अखाड़े के बारे में जाना। आशा करते हैं कि आपको ये पसंद आयेगा और आपकी जानकारी भी बढ़ेगी। धन्यवाद-
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