दुर्गा देवी शक्ति स्वरुपा-Durga Devi Shakti Swarupa...

हिन्दू सनातन धर्म और संस्कृति में शक्ति का बहुत बड़ा महत्व हैं। क्योंकि शक्तिहीन पुरुष को ना तो परमात्मा की प्राप्ति होती हैं न ही वह स्वयं को प्राप्त कर पाता हैं इस कारण से सनातन धर्म व संस्कृति में शक्ति का एक विशेष महत्व व मान्यता हैं हिन्दू धर्म में शक्ति का स्वरूप माता दुर्गा को माना जाता हैं। आज हम हमारे लेख- दुर्गा देवी शक्ति स्वरूपा Durga Devi Shakti Swarupa के माध्यम से ये बतानें जा रहें हैं कि क्यों माता दुर्गा को शक्ति का स्वरूप माना जाता हैं?

Durga Devi Shakti Swarupa

दुर्गा देवी शक्ति स्वरुपा-Durga Devi Shakti Swarupa...

Durga Devi Shakti Swarupa: ईश्वर द्वारा प्रतिपादित समस्त जीवों का संचालन शक्ति से होता हैं। हमारे त्रिदेव-"ब्रह्मा" "विष्णु" व "महेश" को भी त्रिशक्तियाँ "सरस्वती" 'लक्ष्मी" और "पार्वती" की आवश्यकता पड़ती हैं। शास्त्रों में वर्णन मिलता हैं, कहा गया हैं-  'नायमात्मा बलहीनेन लभ्य' अर्थात- शक्तिहीन व्यक्ति को न तो परमात्मा की प्राप्ति होती हैं और न ही स्वयं की आज के इस आधुनिक युग में समस्त राष्ट्र अपने को शक्ति सम्पन्न बनाने के लिये एक दूसरे से होड में लगे हैं। नित्य नये नये अविष्कार कोई ना कोई देश कर रहा हैं। विश्व में सर्वत्र भीषण अशांति छायी हुई हैं। व्यक्ति किसी न किसी रोग या शोक से ग्रस्ति होता जा रहा हैं। समाज में हिंसा, भ्रष्टाचार आदि कुप्रवृत्तियाँ दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं।

Durga Devi Shakti Swarupa: संसार में स्थित देश विकास के नाम पर मूढ़तावश महाविनाश की तैयारी में लगे हैं। इस एकमात्र कारण शक्ति की आराधना से विमुख होना ही हैं। माँ की उपासना-आराधना से मनुष्य विशिष्ट शक्ति लाभ प्राप्त करता हैं। कोमल हृदय वाली सर्वशक्तिदात्री दुर्गा का ध्यान व वंदना करने से व्यक्ति सर्वसद्गुणों को प्राप्त करता हैं तथा स्वयं में नवीन शक्ति का संचार महसूस करता हैं। विश्व में जितने भी जड़ या चेतन पदार्थ हैं। वे सभी शक्ति के प्रभाव से अपने को बनाये रखते हैं। यूं कहना भी निराधार नहीं होगा कि प्रत्येक जीव जाने अनजाने में शक्ति की पूजा करता हैं। किन्तु उसके शुद्ध स्वरूप को न जानकर मोहित हो जाता हैं।

Durga Devi Shakti Swarupa: सच्ची शक्ति को पहचान कर मन, वचन व कर्म से पवित्र होकर निष्ठायुक्त अखण्ड साधना के फलस्वरूप व्यक्ति परम प्रेमस्वरूप दुर्गा की प्राप्ति कर सकता हैं। जब ऐसा होता तो व्यक्ति की प्रज्ञा प्रखर हो जाती हैं। उसके अन्तःकरण में एक ऐसे तेज और शक्ति का प्रकाश होता हैं। जिसके सम्पर्क में आने वाला असाधु- साधु हो जाता हैं। नास्तिक भी भगवद्-भक्त हो जाता हैं और संसार के समस्त तापों से छूटकर शान्ति का अधिकारी बन जाता हैं। देवी दुर्गा जो जगत माता भी हैं पग-पग पर हमारी सार-सँभाल करती हैं। जिस माँ को हम दूर समझकर दुःखी और असहाय बने रोते हैं वह हमारे अत्यंत निकट हैं आवश्यकता हैं तो केवल पहचानने की शास्त्रों में दुर्गा देवी को समझने के उद्देश्य से वर्णित मंत्र इस प्रकार हैं-

1. या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
जो देवी चेतनारुप से सब प्राणियों में बसी हुई हैं हम में जो चैतन्य हैं वह देवी के अस्तित्व का ही अंश हैं, उस देवी को हम नमस्कार करते हैं उसे नमस्कार करते हैं।
2. या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।
देवी सब प्राणियों में बुद्धिरुप बनकर रहती हैं। हम विचार इसीलिए कर पाते हैं कि माँ बुद्धिरुप होकर हमें विचार करने में सहायता देती हैं।
3. या देवी सर्वभूतेषु क्षृधारुपेण संस्थिता।
परिश्रम के बाद जब मनुष्य को क्षुधा सताती हैं तो देवी भोजन के द्वारा हमारा पोषण करती हैं। 

Durga Devi Shakti Swarupa

       
4. या देवी सर्वभूतेषु निद्रारुपेण संस्थिता।
दिनभर काम करते करते जब हम थक जाते हैं तब देवी दुर्गा नींद बनकर हमारे पास आती हैं।          
5. या देवी सर्वभूतेषु छायारुपेण संस्थिता।
माँ को हम इतने प्यारे हैं कि वह एक क्षण भी हमसे अलग नहीं रहना चाहती। सदा हमारे साथ हमारी छाया बनी फिरती हैं।      
6. या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण संस्थिता।
हम जो कुछ छोटा या बड़ा कार्य सम्पन्न करते हैं, माँ शक्ति बनकर हमें उसे पूरा करने में सहायता देती हैं। इस प्रकार कल्याणमयी माता भगवती अहर्निश हमारे हितसाधन में संलग्न रहती हैं तथा तरह-तरह के रुप बनाकर हमें सुखी बनाने में तत्पर रहती हैं। माता ही संसार में अधिक पूज्य हैं' मातुः परं दैवतम् ' अखिल विश्व जननी के अनन्त क्रोड में ये अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड शिशुवत् खेल रहा हैं "त्वमसि भूः सलिलं पवनस्तथा खमपि वह्निगुणश्च तथा पुनः। जननि तानि पुनः करणानि त्वमसि बुध्दिमनोsप्यथ हंकृतिः" ।।देवीभागवत // )
जीव को विश्व की मूलधार महामाया शक्ति स्वरूपा दुर्गा देवी की आराधना कर जीवन को सुखी सार्थक बनाना चाहिये ...

नोटः-'इस लेख में दी गई जानकारीसामग्रीगणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं हैं। सूचना के विभिन्न माध्यमोंज्योतिषियोंपंचांगप्रवचनोंधार्मिक मान्यताओंधर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना हैं, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'

CONCLUSION:- आज हमनें हमारें लेंख- दुर्गा देवी शक्ति स्वरूपा Durga Devi Shakti Swarupa के माध्यम से जाना कि ईश्वर द्वारा प्रतिपादित समस्त जीवों का संचालन शक्ति से होता हैं। हमारे त्रिदेव-"ब्रह्मा" "विष्णु" व "महेश" को भी त्रिशक्तियाँ "सरस्वती" 'लक्ष्मी" और "पार्वती" की आवश्यकता पड़ती हैं। शास्त्रों में वर्णन मिलता हैं, कहा गया हैं-  'नायमात्मा बलहीनेन लभ्य' अर्थात- शक्तिहीन व्यक्ति को न तो परमात्मा की प्राप्ति होती हैं और न ही स्वयं की आशा करते हैं कि आपको हमारा ये लेख पसंद आयेगा। धन्यवाद

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