देव प्रतिमा- Dev Pratima ...

अक्सर ये सभी हिन्दू सनातन संस्कृति धर्म को मानने वाले भूल कर बैठते हैं वे किसी भी मन्दिर में जातें हैं तो आते वक्त कोई ना कोई देवी देवता की प्रतिमा ले आते हैं और घर के मन्दिर में स्थापित कर लेते हैं। हालांकि ये उनकी श्रद्धा का विषय मान लिया जाता हैं। हिन्दू धर्म में मूर्ति पूजा करना संस्कृति का एक अभिन्न अंग माना जाता हैं। किन्तु ये घर पर करना कितना उचित हैं या अनुचित ये हिन्दू धर्म के पंडितों का विषय हैं। 
शास्त्रों के अनुसार- प्रत्येक गृहस्थ के लिए पांच देवों की पूजा का नियम बताया गया हैं। जिसे "पंचायतन" कहा जाता हैं। सनातन संस्कृति में पंचायतन पूजा श्रेष्ठ मानी गई हैं। ये पांच देव हैं- "गणेश" "शिव" "विष्णु" "देवी दुर्गा" व 'सूर्यदेव"  आज हमारा लेख भले ही छोटा हैं किन्तु इसमें जानकारी बहुत हैं इसमें हम देव प्रतिमा के बारें में जानेंगे तो आयें जानतें हैं हमारे लेख- देव प्रतिमा-Dev Pratima के माध्यम से इस बारें में हमारें ग्रंथ में क्या लिखा गया हैं ? 
इसमें धातु और रत्नों की मूर्तियाँ श्रेष्ठ मानी गयी हैं अष्ट धातु की पर्वत से उत्पन्न रत्न, मूंगा तथा श्रेष्ठ वृक्षों के काष्ठ से उत्पन्न प्रतिमा अच्छी मानी गयीं हैं। अष्ट धातु में सोना, चाँदी, तांबा, पीतल, कांसा, लोहा इत्यादि शामिल होता हैं। स्फटिक, पद्ममराग, हीरा, नीलम, वैदूर्य मणि, पुखराज इत्यादि रत्नों की बनी मूर्ति भी अच्छी मानी गयी हैं। चन्दन, श्रीफल, कपूर, देवदारु, श्रीपर्णी, खदिर व अजुर्न वृक्ष की काष्ठ प्रतिमा के लिये श्रेष्ठ मानी गयीं हैं।

Dev Pratima

देव प्रतिमा-Dev Pratima ...

Dev Pratima: प्रतिमाओं के दोष-घरों में बारह अंगुल से अधिक की प्रतिमाएं पूजन योग्य नहीं हैं खण्डित या चटकी हुई प्रतिमा का पूजन करने से दुःख आता हैं परन्तु सौ वर्ष से अधिक की यह प्रतिमा हो तो दोष नहीं होता। धातु, रत्न इत्यादि की प्रतिमाओं का संस्कार करके शुध्द किया जा सकता हैं परन्तु काष्ठ और पाषाण की मूर्ति टूट जाये तो संस्कार योग्य नहीं हैं। बीमार, कोटरयुक्त, वृद्ध व हिंसक जानवरों वालें वृक्षों की काष्ठ प्रयोग में नहीं लानी चाहिये। प्रतिमाएं शास्त्रोक्त प्रमाण से ही बनी होनी चाहिये न तो अंग बड़े हो और न ही छोटे घर में दो शिव लिंग, तीन गणेश, तीन शक्ति तथा दस अवतारों से चिह्नित शंख की पूजा नहीं की जानी चाहिये दो द्वारिका चक्र, दो शालिग्राम, दो शंख और दो सूर्यों की पूजा नहीं करनी चाहये चण्डी, सूर्य, गणेश तथा दीप के पूजन में तुलसी का प्रयोग नहीं करना चाहिये यदि कोई प्रतिमा भग्न हो जाये तो उस विसर्जित कर देना चाहिये परन्तु केवल नख, आभूषण, माला और अस्त्र ही भंग हो तो उसे विसर्जित करने की आवश्यकता नहीं है।

इन दिनों पी. ओ. पी. इत्यादि से बनी मूर्तियाँ बहुत अधिक काम में ली जा रही हैं जो कि शास्त्रोक्त नहीं हैं। रुप "मण्डन ग्रंथ" के अनुसार मिट्टी का शिव लिंग भी मान्य हैं परन्तु प्रतिमाओं के लिये मिट्टी या क्ले का उल्लेख शास्त्रों में नहीं हैं आजकल जिस सामग्री से प्रतिमाएं बन रही हैं चाहे वे गणपति की हों या दुर्गा पूजा की वे शास्त्रोक्त नहीं हैं और शुभ परिणाम नहीं दे पाती हैं।

जैसा की हमनें हमारें लेंख के ऊपर के पैराग्राफ में "पंचायतन" के बारे में आपको बताया तो आयें जानेतें हैं कि पंचायतन पूजा क्या हैं? सनातन धर्म में "पंचायतन" पूजा श्रेष्ठ मानी गई है। ये पांच देव हैं- गणेश, शिव, विष्णु, देवी दुर्गा व सूर्य। शास्त्रानुसार- प्रत्येक गृहस्थ के पूजा गृह में इन पांच देवों के विग्रह या प्रतिमा होना अनिवार्य हैं। इन 5 देवों के विग्रहों को अपने ईष्ट देव के अनुसार- सिंहासन में स्थापित करने का भी एक निश्चित क्रम हैं। आइए जानते हैं किस देव का पंचायतन सिंहासन में किस प्रकार रखा जाता हैं।


1. गणेश पंचायतन:- जिस किसी के भी ईष्ट भगवान गणेश हों तो वह अपने पूजागृह में "गणेश पंचायतन" की स्थापना कर सकता हैं। इसके लिए आप सिंहासन के ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में शिव, मध्य में गणेश, नैर्ऋत्य कोण में सूर्य एवं वायव्य कोण में देवी विग्रह को स्थापित करें।

2. शिव पंचायतन:- यदि आपके ईष्ट शिव हैं तो आप अपने पूजागृह में "शिव पंचायतन" की स्थापना करें। इसके लिए आप सिंहासन के ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में सूर्य, मध्य में शिव, नैर्ऋत्य कोण में गणेश एवं वायव्य कोण में देवी विग्रह को स्थापित करें।

3. विष्णु पंचायतन:- यदि आपके ईष्ट विष्णु हैं तो आप अपने पूजागृह में "विष्णु पंचायतन" की स्थापना करें। इसके लिए आप सिंहासन के ईशान कोण में शिव, आग्नेय कोण में गणेश, मध्य में विष्णु, नैर्ऋत्य कोण में सूर्य एवं वायव्य कोण में देवी विग्रह को स्थापित करें।

4. देवी दुर्गा पंचायतन:- यदि आपकी ईष्ट देवी दुर्गा हैं तो आप अपने पूजागृह में "देवी पंचायतन" की स्थापना कर सकत हैं। इसके लिए आप सिंहासन के ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में शिव, मध्य में देवी दुर्गा, नैर्ऋत्य कोण में गणेश एवं वायव्य कोण में सूर्य विग्रह को स्थापित करें।

5. सूर्य पंचायतन:- यदि आपके ईष्ट सूर्य देव हैं तो आप अपने पूजागृह में "सूर्य पंचायतन" की स्थापना करें। इसके लिए आप सिंहासन के ईशान कोण में शिव, आग्नेय कोण में गणेश, मध्य में सूर्य, नैर्ऋत्य कोण में विष्णु एवं वायव्य कोण में देवी विग्रह को स्थापित करें।

नोटः-'इस लेख में दी गई जानकारी, सामग्री, गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, धार्मिक मान्यताओं, धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।' 

CONCLUSION-आज हमारा लेख- देव प्रतिमा Dev Pratima भले ही छोटा रहा हो किन्तु उसमें जानकारी भरपूर हैं क्योंकि हम सनातनी भूलवश ऐसी छोटी सी भूल अक्सर कर देते हैं तो आज हमनें सोचा कि एक लेख लिखे जिसे पढ़ने के बाद आप ये भूल ना करें इस कारण से हमनें ये छोटा सा लेख लिखा जो कि आप सभी लोगों के लिए उपयोगी होगा साथ साथ ही इस लेख में पंचायतन के विषय में भी जानकारी उपलब्ध करवाई हैं जो कि आपके लिए उपयोगी साबित होगी धन्यवाद।

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