वरदराजा पेरूमल मन्दिर! Varadaraja Perumal Mandir...
हमनें अपने कुछ लेखों में भगवान शिव के मन्दिर के बारे में जाना जैसे कि:- श्री कालाहस्ती मन्दिर, नागेश्वर मन्दिर, नर्मदेश्वर मन्दिर, पशुपतिनाथ मन्दिर, काशी विश्वनाथ मन्दिर, ओंकारेश्वर मन्दिर, रामेश्वर मन्दिर, महाकालेश्वर मन्दिर, मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मन्दिर इसी क्रम में आज हम जायेगें भगवान विष्णु के एक मन्दिर श्री वरदराजा पेरूमल मन्दिर Varadaraja Perumal Mandir ''विष्णु कांचीपुरम''
वरदराजा पेरूमल मन्दिर! Varadaraja Perumal mandir...
Varadaraja Perumal Mandir: भारत के तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम तीर्थ नगर में स्थित भगवान विष्णु को समर्पित एक सनातनी हिन्दू मन्दिर हैं। यह "दिव्य देशम" में से एक हैं, जो विष्णु के 108 मन्दिर हैं जहाँ 13 आलवार संतों ने तीर्थ करा था। यह कांचीपुरम के जिस भाग में हैं उसे विष्णु कांची कहा जाता हैं तमिल सस्कृति या भाषा में "मन्दिर" को "कोइल" या "कोविल" कहा जाता हैं, इस मन्दिर को अनौपचारिक रूप से पेरूमल कोइल {Perumal koil} के नाम से भी जाना जाता हैं। कांचीपुरम के इस मन्दिर, एकाम्बरेश्वर मन्दिर और कामाक्षी अम्मन मन्दिर को सामूहिक रूप से "मूमुर्तिवासम" कहा जाता हैं, यानि "त्रिमूर्तिवास" {तमिल सस्कृति या भाषा में "मू" का अर्थ "तीन" हैं}
1. दिव्य मन्दिर:-
Varadaraja Perumal Mandir: भारत के तमिलनाडु में स्थित कांचीपुरम सनातनी हिन्दू धर्म में सात ऐसे तीर्थ हैं जो सबसे पवित्र माने जाते हैं। उन में से एक हैं कांचीपुरम कांचीपुरम का अर्थ हैं- ‘ब्रह्मा का निवास स्थान’ वेगवती नदी के किनारे स्थित मन्दिरों की भूमि कहें जानें वालें इस दिव्य स्थान में स्थित हैं कईं ऐसे हिन्दू मन्दिर जिनका इतिहास युगों युगों पुराना हैं और जो आज भी उसी रूप में पूज्यनीय हैं जिस रूप में पुरातन काल में हुआ करते थे इन्हीं दिव्य मन्दिर में से एक हैं। श्री वरदराजा पेरुमल मन्दिर इसे श्री देवराज स्वामी मन्दिर के नाम से भी जाना जाता रहा हैं यह भगवान श्रीविष्णु को समर्पित एक मन्दिर हैं जो अथि वरदराजा या वरदराजा स्वामी के रूप में पूजे जाते हैं। संभवतः पूरे विश्व में यह एकमात्र ऐसा स्थान हैं जहाँ मन्दिर के इष्टदेव 40 वर्ष में एक बार पूजे जाते हैं क्योंकि 40 वर्ष में एक बार ही भगवान वरदराजा स्वामी की मूर्ति मन्दिर परिसर में स्थित पवित्र अनंत सरोवर से बाहर आती हैं भगवान श्री वरदराजा की मूर्ति अंजीर वृक्ष की लकड़ी से बनी हैं-
2. श्री वरदराजा मन्दिर की पौराणिक कथा:-
Varadaraja Perumal Mandir: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता सरस्वती नाराज होकर देवलोक से इस स्थान पर आ गई थीं। इसके बाद जब सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी उन्हें मनानें के लियें आयें तो ब्रह्माजी को देखकर माता सरस्वती वेगवती नदी के रूप में बहने लगीं ब्रह्माजी ने इस स्थान पर अश्वमेध यज्ञ करने का निर्णय लिया उनके यज्ञ का विध्वंस करने के लिए माता सरस्वती नदी के तीव्र वेग के साथ आईं- तब माता सरस्वती के क्रोध को शांत करने के लियें यज्ञ की वेदी से भगवान विष्णु ''श्री वरदराजा स्वामी'' के रूप में प्रकट हुए- चूँकि इस क्षेत्र में अंजीर के पेड़ों का एक विशाल वन था इसलिए इन्हीं अंजीर के पेड़ों की लकड़ी से देवों के शिल्पकार विश्वकर्मा जी ने श्री वरदराजा की प्रतिमा का निर्माण किया अंजीर को ‘अथि’ के नाम से जाना जाता हैं, इसी कारण भगवान श्री वरदराजा को ‘अथि वरदराजा’ के रूप में जाना जाने लगा विश्वकर्मा जी ने अथि वरदराजा की 12 फुट की मूर्ति का निर्माण किया था। 11वीं शताब्दी के दौरान मन्दिर का निर्माण महान चोल शासकों ने कराया था और इसके बाद लगातार हिन्दू राजाओं द्वारा मन्दिर का जीर्णोद्धार होता रहा। 23 एकड़ में बने इस मन्दिर में 19 विमानम के अलावा 400 स्तंभों वाले मंडप हैं जोकि- ''श्री वरदराजा को समर्पित हैं।'' 16वीं शताब्दी तक मन्दिर के गर्भगृह में श्री वरदराजा की मूर्ति विराजित थी और पूरे रीति-रिवाज के साथ उनकी पूजा हुआ करती थी लेकिन पूरे भारत की तरह अंततः यह मन्दिर भी मुस्लिम आक्रान्ताओं की भेंट चढ़ गया मन्दिर में जब मुस्लिम आक्रान्ताओं का आक्रमण हुआ तब भगवान की मूर्ति को सुरक्षित रखने के लियें उसे मंदिर परिसर में स्थित अनंत सरोवर के अंदर डाल दिया गया।
40 वर्षों तक मन्दिर बिना प्रतिमा मूर्ति के रहा जब अंततः मूर्ति नहीं मिली तब मन्दिर में श्री वरदराजा की पाषाण की एक मूर्ति बनवाई गईं और उसकी स्थापना मन्दिर के गर्भगृह में की गई। सन् 1790 में किसी अज्ञात कारण से अनंत सरोवर का जल कम हुआ, जिससें भगवान अथि वरदराजा की वही पुरानी मूर्ति बाहर आ गईं। मन्दिर के मुख्य पुजारी धर्मकर्ता के दो पुत्रों ने काष्ठ की उस मूर्ति को सरोवर से बाहर निकाला और मन्दिर के गर्भगृह में उसकी स्थापना की लेकिन गर्भगृह में 48 दिन तक रहने के बाद मूर्ति पुनः सरोवर में चली गईं उसी दिन से यही तय किया गया कि मूर्ति को 40 सालों में एक बार निकाला जायेंगा ऐसी मान्यता हैं कि- चूँकि मुख्य मूर्ति की अनुपस्थिति में पत्थर की एक नई मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा पूरे विधि-विधान से की गई थी, इस कारण सनातन की मर्यादा का मान रखने के लिए भगवान श्री वरदराजा की पुरानी मूर्ति ने सरोवर के भीतर ही रहना स्वीकार किया, जिसकी पूजा गुरु बृहस्पति सरोवर के अंदर ही करते हैं।
CONCLUSION- आज हमनें हमारें लेंख- वरदराजा पेरुमल मन्दिर Varadaraja Perumal Mandir के माध्यम से तमिलनाडु राज्य के अन्तर्गत आने वाले इस मन्दिर के बारे में विस्तृत रूप से जाना आशा करते हैं कि आपको हमारा ये लेख पसंद आयेगा धन्यवाद।
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