Mahashivaratri Shiv Ki Ratri...

हमनें हमारें पुराने लेख में देवाधिदेव महादेव से सम्बन्धित लेख- महाशिवरात्रि शिवरात्रि व्रत, नर्मदेश्वर शिवलिंग, नागेश्वर महादेव मन्दिर, पशुपतिनाथ मन्दिर और काशी विश्वनाथ मन्दिर के बारें में विस्तृत रुप में ईश्वर शिव के मन्दिरों के बारें में जाना इसी क्रम में आगें बढ़ते हुए- Mahashivaratri Shiv Ki Ratri: महाशिवरात्रि शिव की रात्रि के माध्यम से जानेंगे की- ये रात्रि "शिव-पार्वती" के विवाह की हैं लेकिन असल में इस दिन भगवान शिव पहली बार "ज्योतिर्लिंग" के रूप में प्रकट हुए थे। 

Mahashivaratri Shiv Ki Ratri

Mahashivaratri Shiv Ki Ratri महाशिवरात्रि शिव की रात्रि...

Mahashivaratri Shiv Ki Ratri: शिवपुराण कहता हैं- वो रात थी और उस ज्योतिर्लिंग के प्रारंभ और अंत का कोई पता नहीं लगा सका भगवान "ब्रह्मा" और "विष्णु" भी नहीं "शिव का यही स्वरूप महाशिव कहलाया और वो रात महाशिवरात्रि" शिव के कई स्वरूप हैं कई नाम हैं और हर नाम के पीछे कोई कहानी हैं कोई ऐसी बात हैं जो हमें आज भी जिंदगी जीने के कुछ तरीके सिखा सकती हैं आज हम इन्हीं नामों के पीछे के कारण और अर्थ को समझेंगे-

1. सारे जीवों के स्वामी हैं शिव Saare Jeevon Ke Swami Hain Shiv:-

Mahashivaratri Shiv Ki Ratri: महाभारत में विष्णु सहस्रनाम स्त्रोत में वेद व्यास ने भगवान शिव के लिए ईश्वर शब्द का इस्तेमाल किया हैं शिव पुराण में शिव को कई जगह ईश्वर कहकर संबोधित किया गया हैं। ईश्वर का अर्थ हैं- "स्वामी" यानी "मालिक" शिव को सृष्टि का स्वामी माना गया हैं। यही कारण हैं कि- शिव के हर नाम में ईश्वर शब्द जोड़ा गया हैं चाहे केदारेश्वर हो या महाकालेश्वर, काशी विश्वनाथ का एक नाम विश्वेश्वर भी हैं जो हर चीज का स्वामी हैं वो ईश्वर हैं शिव पुराण की "रुद्र संहिता" में ब्रह्मा के जन्म की कहानी हैं जिसमें ब्रह्मा! कहते हैं कि शिव ने अपनी इच्छा शक्ति से मुझे विष्णु के नाभि कमल से उत्पन्न किया हैं। ईश्वर इसलिए भी कहे जाते हैं क्योंकि सृष्टि में संहार का काम भी शिव के पास हैं जिसके पास चीजों को खत्म करने का अधिकार होता हैं वास्तव में वो ही उसका स्वामी होता हैं।

2. शिव पुराण में शिव Shiv Puran Mein Shiv:-

Mahashivaratri Shiv Ki Ratri: शिव पुराण में शिव को विद्येश्वर भी कहा गया हैं इसका अर्थ हैं सारी विद्याओं के मालिक देवताओं के गुरु बृहस्पति, दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य और पूरे मानव समाज को बनाने वाले सप्तऋषियों के गुरु भगवान शिव ही हैं। इन्हें आदिगुरु माना गया हैं- योग, ज्योतिष, तंत्र और चिकित्सा ये सारी विद्याएं शिव की ही हैं। एक पौराणिक कहानी हैं कि- समुद्र मंथन के बाद जब भगवान विष्णु ने देवताओं को मोहिनी रूप बनाकर सारा अमृत पिला दिया तो दैत्य न्याय के लिए शिव के पास पहुंचे ''शिव के लिए सभी समान थे'' दैत्यों के राजा बलि ने भगवान शिव को पूरी बात बताई और ये कहा कि- देवताओं ने सारा अमृत पी लिया और अमर हो गए अब वो हम दैत्यों के लिए खतरा हो गए हैं। 
भगवान शिव ने पूरी स्थिति को समझा और ये कहा कि- देवताओं को ऐसा नहीं करना चाहिए था अगर बात अमृत को बराबर बांटने की हुई थी तो उन्हें इस बात पर खरा उतरना था भगवान शिव ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य को उस समय मृत संजीवनी विद्या दी जिससे वो किसी ऐसे व्यक्ति को भी जिंदा कर सकते थे जिसे मारकर जला दिया गया हो और सिर्फ राख ही बची हो उस राख से भी फिर उस व्यक्ति को जिंदा किया जा सकता था। शिव ही नीलकंठ, शिव ही अघोरी, शिव ही चंद्रशेखर या आशुतोष, शिव ही कैलाशवासी, शिव ही वाघंबरधारी, शिव ही महाकालेश्वर और शिव ही शंकर हैं।

नोटः-'इस लेख में दी गई जानकारी, सामग्री, गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं हैं। सूचना के विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, धार्मिक मान्यताओं, धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना हैं, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'

CONCLUSION:-आज हमनें हमारें लेख- Mahashivaratri Shiv Ki Ratri: महाशिवरात्रि शिव की रात्रि के माध्यम से आपको बताया कि- कैसे सारे जीवों के स्वामी शिव हैं के बारे में इस लेख के माध्यम से बताया आशा करते हैं कि आपको हमारा ये लेख पसंद आया होगा धन्यवाद।

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