शिला देवी मंदिर आमेर का इतिहास Shila Devi Mandir Amer Ka Itihaas...

हमनें हमारें पुराने लेख श्री गोविंद देव जी मंदिर के माध्यम से जाना की कैसे मंदिर श्री गोविंद देव जी जयपुर वासियों के आराध्य देव हैं इसी क्रम में हम आगें बढ़ते हुयें जयपुर के नजदीक आमेर में स्थित शिला देवी मंदिर आमेर का इतिहास Shila Devi Mandir Amer Ka Itihaas के माध्यम से जानेंगे इस मंदिर के बारें में-
राजस्थान के जयपुर के नजदीक हैं आमेर का किला उस किले के चौक में माता शिलादेवी का प्राचीन मन्दिर स्थापित हैं इसकी स्थापना महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय द्वारा की गई थी कहा जाता हैं कि शिलादेवी जयपुर के कछवाहा राजपूत राजाओं की कुल देवी हैं। इस मन्दिर में साल में दो बार मेलों का आयोजन होता। मुख्यतः नवरात्रि के अवसर पर यहां भक्तों की अपार भीड़ माता के दर्शनों के लिये आती हैं।

Shila Devi Mandir Ka Itihaas

शिला देवी मंदिर आमेर का इतिहास Shila Devi Mandir Amer Ka Itihaas...

Shila Devi Mandir Amer Ka Itihaas: शिला देवी की मूर्ति के पास में भगवान गणेश और मीणाओं की कुलदेवी हिंगला मात की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं कहते हैं- कि यहां पहले मीणाओं का राज हुआ करता था। नवरात्रों में यहाँ दो मेले लगते हैं एवं देवी को प्रसन्न करने के लियें पशु बलि दी जाती हैं। आमेर दुर्ग के महल में जलेब चौक हैं जिसके दक्षिणी भाग में शिलामाता का ऐतिहासिक मंदिर स्थित हैं। देवी शिलामाता राजपरिवार की कुल देवी भी मानी जाती हैं । यह मंदिर जलेब चौक से दूसरे उच्च स्तर पर मौजूद हैं अतः यहां से कुछ सीढ़ियाँ चढ़ कर मंदिर तक पहुंचना होता हैं। शिला देवी मूलतः अम्बा माता का ही रूप हैं एवं कहा जाता हैं कि- आमेर या आंबेर का नाम इन्हीं अम्बा माता के नाम पर ही अम्बेर पड़ा था जो कालान्तर में आम्बेर या आमेर हो गया माता की प्रतिमा एक शिला पर उत्कीर्ण होने के कारण इसे शिला देवी कहा जाता हैं।

1. शिला देवी मंदिर स्थापत्य कला Shila Devi Temple Architecture:-

Shila Devi Mandir Amer Ka Itihaas: वर्तमान में मंदिर सम्पूर्ण रूप से संगमरमर के पत्थरों द्वारा बना हुआ हैं, जो महाराज सवाई मानसिंह द्वितीय ने 1906 में करवाया था, मूल रूप में यह चूने का बना हुआ था यहाँ प्रतिदिन भोग लगने के बाद ही मन्दिर के पट खुलते हैं तथा यहाँ विशेष रूप से गुजियाँ व नारियल का प्रसाद चढ़ाया जाता हैं। इस मूर्ति के ऊपरी भाग में बाएं से दाएं तक अपने वाहनों पर आरूढ़ भगवान गणेश, ब्रह्मा, शिव, विष्णु एवं कार्तिकेय की सुन्दर छोटे आकार की मूर्तियां बनी हैं शिलादेवी की दाहिनी भुजाओं में खड्ग, चक्र, त्रिशूल, तीर तथा बाईं भुजाओं में ढाल, अभयमुद्रा, मुण्ड और धनुष उत्कीर्ण हैं।
पहले यहां माता की मूर्ति पूर्व की ओर मुख किये हुए थी। जयपुर शहर की स्थापना कियें जाने पर इसके निर्माण के कार्यों में अनेक विघ्न उत्पन्न होने लगे तब राजा जयसिंह ने कई बड़े पण्डितों से विचार विमर्श कर उनकी सलाह अनुसार मूर्ति को उत्तराभिमुख प्रतिष्ठित करवा दिया, जिससे जयपुर के निर्माण में कोई अन्य विघ्न उपस्थित न हो, क्योंकि मूर्ति की दृष्टि तिरछी पढ़ रही थी। तब इस मूर्ति को वर्तमान गर्भगृह में प्रतिष्ठित करवाया गया हैं, जो उत्तराभिमुखी हैं यह मूर्ति काले पत्थर की बनी हैं और एक शिलाखण्ड पर बनी हुई हैं शिला देवी की यह मूर्ति महिषासुर मर्दिनी के रूप में बनी हुई हैं। 
सदैव वस्त्रों और लाल गुलाब के फूलों से ढंकी मूर्ति का केवल मुहँ व हाथ ही दिखाई देते हैं। मूर्ति में देवी महिषासुर को एक पैर से दबाकर दाहिनें हाथ के त्रिशूल से मार रही हैं। इसलिए देवी की गर्दन दाहिनी ओर झुकी हुई हैं। यह मूर्ति चमत्कारी मानी जाती हैं। शिला देवी की बायीं ओर कछवाहा राजाओं की कुलदेवी अष्टधातु की हिंगलाज माता की मूर्ति भी बनी हुई हैं मान्यता अनुसार- हिंगलाज माता की मूर्ति पहले राज कर रहे मीणाओं द्वारा बलूचिस्तान के हिंगलाज भवानी शक्तिपीठ मन्दिर से लायी गई हैं।

Shila Devi Mandir Amer Ka Itihaas

मंदिर के प्रवेश द्वार पर चाँदी का पत्र मढ़ा हुआ हैं जिस पर दस महाविद्याओं, नवदुर्गा की आकृतियाँ अंकित हैं। उस पर नवदुर्गा- "शैलपुत्री" "ब्रह्मचारिणी" "चन्द्रघण्टा" "कूष्माण्डा" "स्कन्दमाता" "कात्यायनी" "कालरात्रि" "महागौरी" एवं "सिद्धिदात्री" की प्रतिमाएँ उकेरी हुई हैं दस महाविद्याओं के रूप में यहां- "काली" "तारा" "षोडशी" "भुवनेश्वरी" "छिन्नमस्ता" "त्रिपुरभैरवी" "धूमावती" "बगलामुखी" "श्रीमातंगी" और "कमला देवी" को दर्शाया गया हैं। द्वार के ऊपर लाल मूगें पत्थर की भगवान गणेश की मूर्ति प्रतिष्ठित हैं मुख्य द्वार के सामने झरोखे हैं जिसके अंदर चांदी का नगाड़ा रखा हुआ हैं। यह नगाड़ा प्रातः एवं सायंकाल आरती के समय बजाया जाता हैं मंदिर की तरफ प्रवेश करते ही दाईं ओर कलाकार धीरेन्द्र घोष द्वारा महाकाली और महालक्ष्मी की सुन्दर चित्रकारी की हुई हैं। मंदिर के कुछ भाग एवं स्तम्भों में बंगाली वास्तु शैली दिखाई देती हैं।

2. शिला देवी मंदिर की मान्यता Recognition of Shila Devi Temple:- 

Shila Devi Mandir Amer Ka Itihaas: शिला देवी मंदिर का द्वारा यहाँ 16वीं शती से 1980 तक प्रतिदिन बकरे की बलि दी जाती थी जो अब बंद कर दी गयी हैं वर्तमान समय में इस देवी मंदिर में धार्मिक इमारतों की प्राचीन वस्तुशिल्प शैली दिखाई देती हैं यहां स्थापित शिला माता की प्रतिमा का चेहरा कुछ टेढा हैं इस मंदिर में वर्ष 1972 तक पशु बलि का प्रावधान था किन्तु आधुनिक समाज के विशेषकर जैन धर्मावलंबियों के विरोध होने के कारण यह बंद कर दी गई मंदिर में शिला देवी की मूर्ति के बारे में कई तरह की कथाएँ एवं किंवदन्तियां सुनाई देती हैं।मंदिर के प्रवेश द्वार पुरातत्वीय ब्यौरा मिलता हैं जिसके अनुसार शिला देवी की मूर्ति को राजा मानसिंह बंगाल से लायें थे, मुगल बादशाह अकबर ने उन्हें बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया था तब उन्हें वहां के तत्कालीन राजा केदार सिंह को हराने भेजा गया कहा जाता हैं कि- केदार राजा को पराजित करने में असफल रहने पर मानसिंह ने युद्ध में अपनी विजय हेतु उस देवी प्रतिमा से आशीर्वाद माँगा इसके बदले में देवी ने स्वप्न में राजा केदार से अपने आपको मुक्त कराने की मांग की इस शर्त के अनुसार देवी ने मानसिंह को युद्ध जीतने में सहायता की और मानसिंह ने देवी की प्रतिमा को राजा केदार से मुक्त कराया और आमेर में स्थापित किया। कुछ अन्य लोगों के अनुसार- राजा केदार ने युद्ध में हारने पर राजा मानसिंह को ये प्रतिमा भेंट की थी। एक अन्य किम्वदन्ति के अनुसार- मानसिंह से राजा केदार ने अपनी कन्या का विवाह किया और देवी की प्रतिमा को भेंट स्वरूप प्राप्त किया किन्तु राजा केदार ने यह मूर्ति समुद्र में पड़े हुए एक शिलाखण्ड से निर्मित करवायी थी और इसी कारण कि मूर्ति का नाम शिला देवी हैं एक अन्य मान्यता- भी इसका उद्गम इंगित करती हैं। इसके अनुसार यह मूर्ति बंगाल के समुद्र तट पर पड़ी हुई थी और राजा मानसिंह इसे समुद्र में से निकालकर सीधे यहां लाये थे। यह मूर्ति शिला के रूप में ही थी और काले रंग की थी राजा मानसिंह ने इसे आमेर लाकर इस पर माता का विग्रह रूप शिल्पकारों से बनवाया एवं इसकी प्राण प्रतिष्ठा करवायी। 

Shila Devi Mandir Amer Ka Itihaas

3. शिला देवी मंदिर के मेले Shila Devi Temple Fair:-

Shila Devi Mandir Amer Ka Itihaas: यहाँ वर्ष में दो बार चैत्र और आश्विन के नवरात्र में मेला लगता हैं। इस अवसर पर माता का विशेष क्षृंगार किया जाता हैं देवी को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बलि दी जाती थी तब यहां उदयपुर के राज परिवार के सदस्य और भूतपर्व जयपुर रियासत के सामन्तगण नवरात्र के इस समारोह में सम्मिलित होते थे। आने वाले भक्तों के लिये दर्शन की विशेष सुविधा का प्रबन्ध किया जाता हैं। मंदिर की सुरक्षा का सारा प्रबन्ध पुलिस अधिकारियों द्वारा किया जाता हैं भक्त पंक्ति में बारी-बारी से दर्शन करते हैं तथा भीड़ अधिक होने पर महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग पंक्तियां बनाकर दर्शन का प्रबन्ध किया जाता हैं। मुख्य मंदिर में दर्शन के बाद बीच में भैरव मंदिर बना हुआ हैं जहाँ माँ के दर्शन के बाद भक्त भैरव दर्शन करते हैं। मान्यता के अनुसार- शिला माँ के दर्शन तभी सफल होते हैं, जब भक्त भैरव दर्शन करके लौटते हैं। इसका कारण हैं कि भैरव का वध करने पर उसने अन्तिम इच्छा में माँ से यह वरदान मांगा था कि आपके दर्शनों के उपरान्त मेरे दर्शन भी भक्त करें ताकि माँ के नाम के साथ भैरव का नाम भी लोग याद रखें और माँ ने भैरव की इस इच्छा को पूर्ण कर उसे यह आर्शीवाद प्रदान किया था।

नोटः-'इस लेख में दी गई जानकारी, सामग्री, गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, धार्मिक मान्यताओं, धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'
CONCLUSION:-आज हमनें हमारे लेख शिला देवी मंदिर का इतिहास Shila Devi Mandir Ka Itihaas के माध्यम से आपको बताया कि मंदिर कि स्थापना कैसे हुईं इस मंदिर कि मान्यता क्या हैं और मंदिर में कौन-कौन से मेलें आयोजित कियें जातें हैं।

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