Vijaya Ekadashi Vart- विजया एकादशीं व्रत कथा...
हमनें हमारे पिछले लेखों में बहुत सी व्रत कथाओं के बारें में आपको जानकारी उपलब्ध कराई जैसे कि निर्जला एकादशी व्रत कथा, शरदपूर्णिमा कि कथा आदि इसी क्रम में हम आपको आज Vijaya Ekadashi Vart-विजया एकादशीं व्रत कथा के महत्व के बारें में और इसके सन्दर्भ में बताईं गईं कथा के बारें में- सनातन धर्म में एकादशीं का महत्वपूर्ण स्थान हैं आज हम जानेंगे विजया एकादशीं का महत्व फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष की एकादशी, बैकुण्ठ एकादशीं कहलाती हैं। इसे 'पंकोद्धार एकादशी' या फिर 'विजया एकादशी' भी कहा जाता हैं तो आयें जानतें हैं इसके बारें में-
Vijaya Ekadashi Vart- विजया एकादशीं व्रत कथा...
Vijaya Ekadashi Vart: विजया एकादशीं का व्रत करने वाले पुरुष शत्रु पर विजयश्री प्राप्त करते हैं। पुराणकथनानुसार- एक कथा हैं कि- माता सीता का पता लगाने के लिए रामचन्द्र वानर सेना के साथ समुद्र के उत्तरी छोर पर खड़े थे तब रावण जैसे बलवान शत्रु और सागर की गम्भीरता को लेकर मन से चिन्तित थे। इसके उपाय के लिए ऋषियों ने श्रीराम को विजया एकादशीं का व्रत करने का मार्ग बतलाया व्रत के प्रभाव से सागर पार कर के श्री राम ने लंकापति का वध किया इस तरह अर्धम पर सत्य की विजय हुई।
1.विजया एकादशीं की कथा Story of Vijaya Ekadashi:-
Vijaya Ekadashi Vart: भगवान श्री कृष्ण ने गाड़िवधारी अजुर्न को ये कथा सुनाई कथा के महत्व को जानकर अजुर्न बहुत हर्षित हुए। जया एकादशीं के महत्व को जानने के बाद अर्जुन कहते हैं हे माधव! फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की विजया एकादशीं का क्या महात्मय हैं? आप से मैं जानना चाहता हूं अत: कृपा कर के इसके विषय में जो कथा हैं वह सुनाएं- अर्जुन द्वारा अनुनय पूर्वक प्रश्न किये जाने पर श्री कृष्ण जी कहते हैं प्रिय अर्जुन फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशीं विजया एकादशीं के नाम से जानी जाती हैं। इस एकादशीं का व्रत करने वाला सदा विजयी रहता हैं। हे अर्जुन! तुम मेरे प्रिय सखा हो अत: मैं इस व्रत की कथा आपसे कह रहा हूं आज तक इस व्रत की कथा मैंने किसी को नहीं सुनाई आप से पूर्व केवल देवर्षि नारद ही इस कथा को ब्रह्मा जी से सुन पायें हैं। तुम मेरे प्रिय हो इसलिए तुम मुझसे यह कथा सुनो- त्रेतायुग की बात हैं श्री राम चन्द्रजी जो अपनी पत्नी सीता को ढूंढते हुए सागर तट पर पहुंचे। सागर तट पर भगवान का परम भक्त जटायु नामक पक्षी रहता था। उस पक्षी ने बताया कि सीता माता को सागर पार लंका नगरी का राजा रावण ले गया हैं और माता इस समय आशोक वाटिका में हैं। जटायु द्वारा सीता का पता जानकर श्री राम चन्द्रजी अपनी वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण की तैयारी करने लगे परंतु सागर के जल जीवों से भरे दुर्गम मार्ग से होकर लंका पहुंचना प्रश्न बनकर खड़ा था।
Vijaya Ekadashi Vart: भगवान श्री राम इस अवतार में मर्यादा पुरूषोत्तम के रूप में विश्व के सामने उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते थे अत: आम मानव की भांति चिंताग्रस्त हो गये। जब उन्हें सागर पार जाने का कोई मार्ग नहीं मिल रहा था तब उन्होंने लक्ष्मण से पूछा कि हे लक्ष्मण! इस सागर को पार करने का कोई उपाय मुझे सूझ नहीं रहा अगर तुम्हारे पास कोई उपाय हैं तो बताओ। श्रीरामचन्द्रजी की बात सुनकर लक्ष्मण बोले प्रभु! आपसे तो कोई भी बात छिपी नहीं हैं आप स्वयं सर्वसामर्थवान हैं फिर भी मैं कहूंगा कि यहां से आधा योजन दूर परम ज्ञानी वकदाल्भ्य ऋषि का निवास हैं हमें उनसे ही इसका हल पूछना चाहिए। भगवान श्रीराम लक्ष्मण समेत वकदाल्भ्य ऋषि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें प्रणाम कर के अपना प्रश्न उनके सामने रख दिया मुनिवर ने कहा हेराम! आप अपनी सेना समेत फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशीं का व्रत रखें- इस एकादशीं के व्रत से आप निश्चित ही समुद्र को पार कर लंकेश को पराजित कर पायेंगे। श्रीरामचन्द्रजी ने तब उक्त तिथि के आने पर अपनी सेना समेत मुनिवर के बताये विधान के अनुसार एकादशीं का व्रत रखा और सागर पर पुल का निर्माण कर लंका पर चढ़ाई की राम और लंकेश का युद्ध (समर) हुआ जिसमें लंकापति रावण (लंकेश) मारा गया।
नोटः-'इस लेख में दी गई जानकारी, सामग्री, गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं हैं। सूचना के विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, धार्मिक मान्यताओं, धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं।
CONCLUSION- आज हमनें हमारे लेख- Vijaya Ekadashi Vart विजया एकादशीं व्रत के माध्यम से बताया कि विजया एकादशीं का एक सनातनी के जीवन में कितना महत्व होता हैं और इसके साथ साथ हमनें विजया एकादशीं की कथा और इसके महत्व के बारें में आपको सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाईं आशा करतें हैं कि ये लेख आपको पसंद आयेगा और इस लेख के सम्बन्ध में आप अपने मित्रों और परिवारजन को भी जानकारी उपलब्ध करवायेंगे।
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