जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते।
राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता इतना ही नहीं वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनोंको प्राप्त करता हैं।
जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं।
जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं।
भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक ऋषिको दिया था उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया।
जो कल्प वृक्षों के बाग के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं और जो तीनो लोकों में सुंदर हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं।
जो युवा, सुन्दर, सुकुमार, महाबली और कमल के "पुण्डरीक" समान विशाल नेत्रों वाले हैं मुनियों के समान वस्त्र एवं काले मृगका चर्म धारण करते हैं।
"फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ। पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ" ॥18॥
जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी, तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं, वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें।
"शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्। रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ" ॥19॥
ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ
मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारा रक्षण करें।
"आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षयाशुगनिषंग सङ्गिनौ। रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम्" ॥20॥
संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे अक्षय बाणो से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें ।
"संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा। गच्छन्मनोरथोऽस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण:" ॥21॥
हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें।
"रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली। काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघूत्तम:" ॥22॥
भगवान का कथन हैं कि श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम
"वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम:। जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम:" ॥23॥
वेदान्त्वेघ, यज्ञेश, पुराण पुरूषोतम, जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का-
"इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित:। अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय:" ॥24॥
नित्य प्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं।
"रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्। स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर:" ॥25॥
दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसार चक्र में नहीं पड़ता ।
"रामं लक्ष्मण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्। काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्। वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्" ॥26॥
लक्ष्मणजी के पूर्वज, सीताजी के पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणा के सागर, गुण-निधान, विप्र भक्त, परम धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावण के शत्रु भगवान् राम की मैं वंदना करता हूं ।
"रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे। रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम:" ॥27॥
राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप, रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजीके स्वामी की मैं वंदना करता हूं ।
"श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम। श्रीराम राम भरताग्रज राम राम। श्रीराम राम रणकर्कश राम राम। श्रीराम राम शरणं भव राम राम" ॥28॥
हे रघुनन्दन श्रीराम! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम
श्रीराम! आप मुझे शरण दीजिए ।
"श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि। श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि। श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये" ॥29॥
मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूं, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ।
"माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:।स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:। सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् । नान्यं जाने नैव जाने न जाने" ॥30॥
श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता, मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं! इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं, उनके सिवा में किसी दुसरेको नहीं जानता ।
"दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा। पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्" ॥31॥
जिनके दाईं और लक्ष्मणजी बाईं और जानकीजी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथजी की वंदना करता हूं।
"लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये" ॥32॥
मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीडा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार रुपी श्रीराम की शरण में हूँ ।
"मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये" ॥33॥
जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान अत्यंत तेज हैं, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूतकी शरण लेता हूं ।
"कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्। आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्" ॥34॥
मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूं ।
"आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्। लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्" ॥35॥
मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर, उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूं जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं।
"भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्। तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्" ॥36॥
राम-राम का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं। राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं।
"रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे। रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:। रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम्। रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर" ॥37॥
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामका भजन करता हूं । सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूं । श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं। मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ । मैं सद्सिव श्रीराम में ही लीन रहूं । हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें।
"राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने" ॥38॥
शिव पार्वती से बोले – हे सुमुखी! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं। मैं सदा राम का स्तवन करता हूं और राम-नाम में ही रमण करता हूं ।
इति- श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥ इस प्रकार बुधकौशिकद्वारा रचित श्रीराम रक्षा स्तोत्र सम्पूर्ण होता है।
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥
FAQ-
1. राम राम लिखने से क्या फायदे होते हैं ?
राम राम नाम जप करने की अपेक्षा हजार गुना अधिक पुण्य राम नाम लिखनें से मिलता हैं ये बात आनन्द रामायण म्यूजियम के अनुसार कहीं गई हैं। कहते हैं कि लाल रंग की स्याही से श्रीराम का नाम लिखने से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं। इससे शनि, राहु और केतु जैसे अशुभ ग्रहों के प्रकोप से राहत मिलती हैं। इसके अलावा मन एकाग्र होता हैं और स्मरण शक्ति में वृद्धि होती हैं।
2. राम स्तुति कब पढ़ना चाहिए ?
रामनवमी पर्व के दिन समस्त कामनाओं की पूर्ति करने वाली भगवान श्रीरामचंद्र जी की चमत्कारी स्तुति। राम जन्मोत्सव पर्व की पूजा आराधना करने के बाद इस स्तुति का पाठ अर्थ सहित जरूर करें। ये राम स्तुति का सहीं समय होता हैं।
3. राम रक्षा स्त्रोत कितनी बार पढ़ना चाहिए ?
वेदों के अनुसार राम रक्षा स्त्रोत का 11 बार पढ़ लिया जायें तो इसका प्रभाव पूरे दिन तक रहता हैं और यदि राम रक्षा स्त्रोत का पाठ 45 दिनों कर लिया जायें तो इसके फल में वृद्धि हो जाती हैं। ऐसा माना जाता हैं कि श्रीराम की भक्ति से बड़े से बड़े संकटों का नाश हो जाता हैं और हर तरह की बाधा का निवारण होता हैं।
4. राम रक्षा स्तोत्र में कितने श्लोक हैं ?
श्री राम रक्षा स्तोत्र में 38 श्लोक हैं जिनमें अधिकांश अनुष्टुप् छन्द में हैं और इस कारण यह बहुत जल्दी ही याद हो जाते हैं।
5. श्री राम रक्षा स्तोत्र क्या हैं ?
श्रीराम रक्षा स्त्रोत श्रीराम का पाठ हैं, जिसे श्रीराम की पूजा करते हुए पढ़ा जाता हैं मानव को इस पाठ के अद्भुत लाभ अपने जीवन में देखने को मिलतें हैं। इस पाठ से अकाल मृत्यु से बचा जा सकता हैं।
6. राम रक्षा स्त्रोत पढ़ने से क्या लाभ होता हैं ?
जो जातक इसका पाठ करता हैं वह दीर्घायु, सुखी, संततिवान, विजयी तथा विनयसंपन्न होता हैं। इससे मंगल का कुप्रभाव समाप्त होता हैं - मान्यता हैं कि इसके प्रभाव से व्यक्ति के चारों और सुरक्षा कवच बनता हैं, जिससे हर प्रकार की विपत्ति से रक्षा होती हैं - इसके पाठ से भगवान राम केप्र साथ पवनपुत्र हनुमान भी प्रसन्न होते हैं।
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