सप्त ऋषि की कथा, मंत्र व गोत्र, कार्य Sapt Rshi Kee Katha Mantr Va Gotr Kaary...

आज हम हमारें लेख सप्त ऋषि की कथा, मंत्र व गोत्र, कार्य Sapt Rshi Kee Katha Mantr Va Gotr Kaary के माध्यम से जानेंगे की सप्त ऋषि कौन हैं? सप्तर्षि सात ऋषियों को कहते हैं जिनका उल्लेख वेद व ग्रन्थों में विस्तृत रूप से मिलता हैं तो आयें इस विषय में जानेंते हैं- वेदो का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता हैं ये नाम निम्न: हैं- 1. "वशिष्ठ ऋषि" 2. "विश्वामित्र ऋषि" 3. "कण्व ऋषि" 4. "भारद्वाज ऋषि" 5. "अत्रि ऋषि" 6. "वामदेव ऋषि" व 7. "शौनक ऋषि"
विष्णु पुराण के अनुसार- सप्तऋषि इस प्रकार हैं:-"वशिष्ठकाश्यपोऽत्रिर्जमदग्निस्सगौतमः। विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्"।। अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं:- 1. "वशिष्ठ ऋषि" 2. "कश्यप ऋषि" 3. "अत्रि ऋषि" 4."जमदग्नि ऋषि" 5. "गौतम ऋषि" 6. "विश्वामित्र ऋषि" और 7. "भारद्वाज ऋषि"

Sapt Rshi Kee Katha Mantr Va Gotr Kaary

सप्त ऋषि की कथा, मंत्र व गोत्र, कार्य Sapt Rshi Kee Katha Mantr Va Gotr Kaary...

Sapt Rshi Kee Katha Mantr Va Gotr Kaary: महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियां मिलती हैं एक नामावली में "कश्यप" "अत्रि" "भारद्वाज" "विश्वामित्र" "गौतम" "जमदग्नि" और "वशिष्ठ" के नाम आते हैं तो दूसरी नामावली के अनुसार सप्तर्षि - "कश्यप" "वशिष्ठ" "मरीचि" "अंगिरस" "पुलस्त्य" "पुलह" और "क्रतु" हैं कुछ पुराणों में "कश्यप" और "मरीचि" को एक माना गया हैं। इसके अलावा अन्य पुराणों के अनुसार सप्तऋषि की नामावली इस प्रकार हैं:- ये क्रमशः 1. क्रतु 2. पुलह 3. पुलस्त्य 4. अत्रि  5. अंगिरा 6. वशिष्ठ और 7. मरीचि है।

1. वशिष्ठ ऋषि Vashisht Rishi:- 

Sapt Rshi Kee Katha Mantr Va Gotr Kaary: ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के कुल गुरू थे राजा दशरथ के चार पुत्रों राम, लक्षमण, भरत व शत्रुघ्न के गुरू ऋषि वशिष्ठ ही थे। गुरू वशिष्ठ के कहने पर ही राजा दशरथ ने अपने दोनों पुत्रों राम व लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में असुरों का वध करने के लिए भेज दिया था। कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध (समर) भी हुआ था वशिष्ठ ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया तो उन्हीं के कुल के "मैत्रावरूण वशिष्ठ" ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया। 

2. विश्वामित्र ऋषि Vishwamitra Rishi:- 

Sapt Rshi Kee Katha Mantr Va Gotr Kaary: विश्वामित्र एक राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय (कपिला) को पाने की लालसा में युद्ध किया था किन्तु वे परास्त हो गये।  इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग करने की कथा जगत प्रसिद्ध हैं। विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था इस तरह ऋषि विश्वामित्र के अनेक क़िस्से हैं। माना जाता हैं कि- हरिद्वार में आज जहाँ शांतिकुंज हैं उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या कर के इंद्र से रुष्ठ होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी विश्वामित्र ने इस जगत को ऋचा बनाने की शिक्षा दी और गायत्री मन्त्र की रचना की जो भारतवासियों के हृदय में और जिह्वा पर हज़ारों सालों से आज तक अनवरत निवास कर रहा हैं। 

3. कण्व ऋषि Kanva Rishi:-

Sapt Rshi Kee Katha Mantr Va Gotr Kaary: कण्व वैदिक काल के ऋषि थे सोमयज्ञ को ऋषि कण्व द्वारा ही सम्पन्न किया गया था। राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला के पुत्र भरत का पालन-पोषण ऋषि कण्व के आश्रम में ही हुआ था।

4. भारद्वाज ऋषि Bhardwaj Rishi:- 

Sapt Rshi Kee Katha Mantr Va Gotr Kaary: वैदिक ऋषियों में भारद्वाज-ऋषि का उच्च स्थान हैं भारद्वाज ऋषि की माता ममता व पिता बृहस्पति थे। राम के पूर्व भारद्वाज ऋषि हुए थे। एक उल्लेख अनुसार- उनकी लंबी आयु का पता चलता हैं कि वनवास के समय मर्यादा पुरुषोत्तम राम इनके आश्रम में गए थे। जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का सन्धिकाल था माना जाता हैं- कि भरद्वाजों में से एक भारद्वाज विदथ ने दुष्यन्त पुत्र भरत का उत्तराधिकारी बन राज-काज करते हुए मन्त्र रचना जारी रखी। ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं और एक पुत्री जिसका नाम रात्रि था वह भी "रात्रि सूक्त" की मन्त्रदृष्टा मानी गई हैं। ॠग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा भारद्वाज ऋषि हैं। 
इस मण्डल में भारद्वाज के 765 मन्त्र हैं। अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं। 'भारद्वाज-स्मृति' एवं 'भारद्वाज-संहिता' के रचनाकार भी ऋषि भारद्वाज ही थे ऋषि भारद्वाज ने 'यन्त्र-सर्वस्व' नामक बृहद् ग्रन्थ  की रचना की थी इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने 'विमान-शास्त्र' के नाम से प्रकाशित कराया हैं। इस ग्रन्थ में निम्न और उच्च स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता हैं।

5. अत्रि ऋषि Atri Rishi:- 

Sapt Rshi Kee Katha Mantr Va Gotr Kaary: ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र दुर्वासा, चन्द्र और दत्तात्रेय के पिता और कर्दम प्रजापति व देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे। अत्रि जब बाहर गए थे तब त्रिदेव अनसूया के घर ब्राह्मण के भेष में भिक्षा माँगने लगे और अनुसूया से कहा कि- जब आप अपने संपूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे तब अनुसूया ने अपने सतित्व के बल पर उक्त तीनों देवों को अबोध बालक बनाकर उन्हें भिक्षा दी माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रत का उपदेश दिया था। अत्रि ऋषि ने इस देश में कृषि के विकास में पृथु और ऋषभ की तरह योगदान दिया था। अत्रि लोग ही सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे जहाँ उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ अत्रि ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था मान्यता हैं कि- अत्रि-दम्पति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में जन्मे ऋषि अत्रि पर अश्विनीकुमारों की भी कृपा थी।

6. वामदेव ऋषि Vamdev Rishi:- 

Sapt Rshi Kee Katha Mantr Va Gotr Kaary: वामदेव ने इस विश्व को संगीत दिया वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं। 

7. शौनक ऋषि Shaunaka Rishi:-

Sapt Rshi Kee Katha Mantr Va Gotr Kaary: शौनक ने 10 हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया और किसी भी ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया वैदिक आचार्य और ऋषि जो शुनक ऋषि के पुत्र थे। महाऋषि वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भरद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक ये हैं वे सात ऋषि जिन्होंने इस विश्व को इतना कुछ दे डाला कि कृतज्ञ विश्व ने इन्हें आकाश के तारामंडल में बिठाकर एक ऐसा अमरत्व दे दिया कि सप्तर्षि शब्द सुनते ही हमारी कल्पना आकाश के तारामंडलों पर टिक जाती हैं। इसके अलावा मान्यता हैं कि- "अगस्त्य" "कष्यप" "अष्टावक्र" "याज्ञवल्क्य" "कात्यायन" "ऐतरेय" "कपिल" "जेमिनी" "गौतम" आदि सभी ऋषि उक्त सात ऋषियों के कुल के होने के कारण इन्हें भी वही दर्जा प्राप्त हैं।

Sapt Rshi Kee Katha Mantr Va Gotr Kaary

FAQ-

1. सप्तर्षि कहां रहते हैं ?

सप्तर्षि आश्रम परम्परा के अनुसार- अपने-अपने आश्रमों में निवास करते हैं। सतयुग काल की शुरुआत पर सप्तर्षि पृथ्वी पर आते हैं और खोयें हुयें धर्म का वर्णन करते हैं कलियुग के अन्त तक सभी धर्म खो जायेंगे। ब्रह्माण्ड पुराण के अध्याय 31 अनुसंधान में मिलता हैं। 

2. सप्त ऋषि के गुरु कौन थे ?

सप्तर्षियों अर्थात सप्तर्षि के गुरु देवाधिदेव महादेव शिव ने गुरु बनकर सप्तर्षियों को ज्ञान दिया, सनातन धर्म अनुसार सप्तर्षियों की उत्पत्ति ब्रह्माजी के मस्तिष्क से हुईं थी जिन्हें शिवजी ने ज्ञान दिया और उनके गुरु कहलायें। 

3. सप्तर्षि नक्षत्र क्या हैं यह कैसा दिखता हैं ?

सप्तर्षि तारामंडल पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध के आकाश में रात्रि में दिखनें वाला एक तारामंडल हैं। इस तारामंडल में सप्तर्षि तीन तिरछी रेखा में और चार चौकोर दिखाईं देते हैं इसे हम फाल्गुन-चैत्र महीनें से श्रावण-भाद्र महिनें तक आकाश में सात तारों के समूह के रूप में देखा जा सकता हैं।

4. सप्तऋषि का अर्थ क्या हैं ?

सप्त ऋषि से अभिप्राय: सात ऋषि से हैं ये सप्तर्षि ब्रह्मा जी के मस्तिष्क से उत्पन्न हुयें, इन्हें देवाधिदेव शंकर ने ग्रंथों और पुराणों की शिक्षा दी मत्स्यपुराण के अनुसार- ब्रह्मा जी ने संसार में धर्म की स्थापना करने और सनातन संस्कृति का ज्ञान बनायें रखने के लियें अपने मस्तक से सप्तर्षियों की उत्पत्ति की थी। 

5. सप्तऋषि की कहानी क्या हैं ? 

सप्तऋषियों में 1. कश्यप, 2. अत्रि, 3. भारद्वाज, 4. विश्वामित्र, 5. गौतम, 6. जमदग्नि, 7.वसिष्ठ शामिल हैं। जब श्रीहरिविष्णुजी ने मत्स्य अवतार लिया उस समय धरती पर जल प्रलय आया था। मत्स्य अवतार के रूप में विष्णु जी ने राजा मनु और सप्तऋषियों को एक नाव में बैठाकर उनकी रक्षा की थी, इनके नामों का जप करने से जानी-अनजानी गलतियों का दोष दूर होता हैं ।

6. सप्तर्षि नक्षत्र को सप्तर्षि क्यों कहा जाता हैं ?

बात ऋषियों के नाम से प्रसिद्ध तारों के एक समूह को सप्तर्षि कहा जाता हैं। ये तारों का समूह रात में आसमान में आसपास ही दिखाईं देता हैं इसमें से चार चौकोर रूप में और तीन एक कतरा में दिखाईं देते हैं। ये इस प्रकार से हैं- क्रतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरस, वशिष्ठ और मारीचि।

7. अशुभ नक्षत्र कौन सा हैं ?

ज्योतिषियों के अनुसार अशुभ नक्षत्र 1. भरणी 2. कृत्तिका 3. मघा और 4. आश्लेषा ये नक्षत्र अशुभ मानें जातें हैं, इन नक्षत्रों के होनें पर शुभ कार्य की मनाही होती हैं, ये नक्षत्र क्रूर और उग्र प्रकृति के कार्यों के लियें जैसे बिल्डिंग गिराना, कहीं आग लगाना, विस्फोटों का परीक्षण करना आदि के लिए ही शुभ होते हैं।

8. कौन से नक्षत्र भाग्यशाली हैं ?

नक्षत्रों की श्रेणी का 17 वां नक्षत्र जिसें ज्योतिष शास्त्र में अनुराधा नक्षत्र के नाम से जाना जाता हैं। इसमें जन्में जातक को भाग्यशाली माना जाता हैं इस नक्षत्र का स्वामी शनि ग्रह हैं जो न्याय का देवता हैं। शनि लोगों को उनके कर्मों के अनुसार फल देतें हैं।

नोटः-'इस लेख में दी गई जानकारी, सामग्री, गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, धार्मिक मान्यताओं, धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'

CONCLUSION-आज हमनें हमारे लेख- सप्त ऋषि की कथा, मंत्र व गोत्र, कार्य Sapt Rshi Kee Katha Mantr Va Gotr Kaary के माध्यम से आपको बताया कि किस तरह सप्त ऋषियों ने संसार को कुछ ना कुछ दिया, जिसे आज हमारा जीवन आसानी से चल रहा हैं, आशा करतें हैं कि- आपको हमारा ये लेख पसंद आयें और हम इसी प्रकार आपके लियें और अच्छे लेख लिखें।

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