Mahaakaaleshvar Mandir Baba Mahaakaaleshvar...
आज हम हमारें लेख- Mahaakaaleshvar Mandir Baba Mahaakaaleshvar के माध्यम से जानेंगे की महाकालेश्वर मंदिर का इतिहास क्या हैं और मंदिर के अन्तर्गत आने वाले मंदिरों के बारें में जैसे कि श्री बड़े गणेश मंदिर, हरसिध्दि माता मंदिर, क्षिप्रा नदी घाट, राम घाट, गोपाल मंदिर, गढ़ कालिका देवी माँ, भृतहरि की गुफा, और कालभैरव मंदिर आदि के बारें में अपने लेख के माध्यम से जानेंगे- उज्जयिनी के श्री महाकालेश्वर भारत में बारह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं।
महाकालेश्वर मंदिर की महिमा का विभिन्न पुराणों में विशद वर्णन किया गया हैं। कालिदास से शुरू करते हुए कई संस्कृत कवियों ने इस मंदिर को भावनात्मक रूप से समृद्ध किया हैं उज्जैन भारतीय समय की गणना के लिए केंद्र बिंदु हुआ करता था और महाकाल को उज्जैन का विशिष्ट पीठासीन देवता माना जाता था। काल के देवता शिव अपने सभी वैभव में उज्जैन में शाश्वत शासन करते हैं।
Mahaakaaleshvar Mandir Baba Mahaakaaleshvar...
Mahaakaaleshvar Mandir Baba Mahaakaaleshvar: महाकालेश्वर मंदिर का शिखर आसमान में चढ़ता हैं आकाश के खिलाफ एक भव्य अग्रभाग अपनी भव्यता के साथ आदिकालीन विस्मय और श्रद्धा को उजागर करता हैं। महाकालेश्वर नगर और नगरवासियों के जीवन पर हावी हैं यहां तक कि आधुनिक व्यस्तताओं के व्यस्त दिनचर्या के बीच भी पिछली परंपराओं के साथ एक अटूट जुड़ाव प्रदान करता हैं। भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल में लिंगम स्वभूं स्वयं से उत्पन्न हुआ हैं। महाकालेश्वर की मूर्ति दक्षिणमुखी होने के कारण दक्षिणामूर्ति मानी जाती हैं।
Mahaakaaleshvar Mandir Baba Mahaakaaleshvar: यह एक अनूठी विशेषता हैं जिसे तांत्रिक परंपरा द्वारा केवल 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकालेश्वर में पाया जाता हैं । महाकाल मंदिर के ऊपर गर्भगृह में ओंकारेश्वर शिव की मूर्ति प्रतिष्ठित हैं। गर्भगृह के पश्चिम उत्तर और पूर्व में गणेश, पार्वती और कार्तिकेय के चित्र स्थापित हैं। दक्षिण में नंदी की प्रतिमा हैं तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर की मूर्ति केवल नागपंचमी के दिन दर्शन के लिए खुली होती हैं। महाशिवरात्रि के दिन मंदिर के पास एक विशाल मेला लगता हैं और रात में पूजा होती हैं।
1. महाकालेश्वर मंदिर का इतिहास History of Mahakaleshwar Temple:-
Mahaakaaleshvar Mandir Baba Mahaakaaleshvar: इतिहास से पता चलता हैं कि- उज्जैन में सन् 1108 से1728 ई. तक यवनों का शासन था। इनके शासनकाल में अवंतिका ( उज्जैनी ) की लगभग 4500 वर्षों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्राय: नष्ट हो चुकी थी लेकिन 1690 ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया और 29 नवंबर 1728 को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा और सन 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही।
Mahaakaaleshvar Mandir Baba Mahaakaaleshvar: मराठों के शासनकाल में यहाँ दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं पहला- महाकालेश्वर मंदिर का पुनिर्नर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी आगे चलकर राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार कराया। मंदिर एक परकोटे के भीतर स्थित हैं। गर्भगृह तक पहुँचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता हैं इसके ठीक ऊपर एक दूसरा कक्ष हैं जिसमें ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित हैं। मंदिर का क्षेत्रफल 10.77×10.77 वर्गमीटर और ऊंचाई 28.71 मीटर हैं।
महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती हैं। मंदिर से लगा एक छोटा-सा जलस्रोत हैं जिसे कोटितीर्थ कहा जाता हैं। ऐसी मान्यता हैं कि इल्तुत्मिश ने जब मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में फिकवा दिया था। बाद में इसकी पुनर्प्रतिष्ठा करायी गयी सन 1968 के सिंहस्थ महापर्व के पूर्व मुख्य द्वार का विस्तार कर सुसज्जित कर लिया गया था। इसके अलावा निकासी के लिए एक अन्य द्वार का निर्माण भी कराया गया था। लेकिन दर्शनार्थियों की अपार भीड़ को दृष्टिगत रखते हुए बिड़ला उद्योग समूह के द्वारा 1980 के सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण कराया। महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्था के लिए एक प्रशासनिक समिति का गठन किया गया हैं जिसके निर्देशन में यहाँ की व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही हैं। हाल ही में इसके 118 शिखरों पर 16 किलो स्वर्ण की परत चढ़ाई गई हैं अब मंदिर में दान के लिए इंटरनेट सुविधा भी चालू की गई हैं।
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