Vakree grahon vakree grahon ka prabhaav...
आज हमारा लेंख वक्री ग्रहों- वक्री ग्रहों का प्रभाव Vakree grahon vakree grahon ka prabhaav: के माध्यम से जानेंगे की जातक की कुण्डली में जब ग्रह वक्री होते हैं तो किस प्रकार से जातक के जीवन पर प्रभाव पड़ता हैं- भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अलग-अलग आचार्यों ने वक्री ग्रहों और वक्री ग्रहों के प्रभाव के बारे में अपने-अपने अनुभव अनुसंधान किये। वक्री यानि उल्टा परन्तु वास्तव में ग्रह अपनी निश्चित गति से अपने कक्ष में लगातार भ्रमण करते हैं प्रत्येक ग्रह की अपनी अलग-अलग परिभम्रण पथ व गति हैं तो आयें जानते हमारे इस लेख के माध्यम से-
Vakree grahon vakree grahon ka prabhaav ...
Vakree grahon vakree grahon ka prabhaav: जैसे कि हम सब जानते हैं कि- सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर अण्डाकार "वृत" में भ्रमण करते हैं। सभी ग्रहों का भ्रमण काल व गति एक समान नहीं होती, यदि एक क्षण के लिये ऐसी कल्पना कर भी ली जाये तो क्षण मात्र में ही सारी सृष्टि और भू-मण्डल का नाश हो जायेगा। यह ठीक वैसी ही कल्पना हैं कि कोई वाहन अपनी तेज गति से चलते-चलते अचानक ब्रेक लगा दे या उल्टा चलने लगे तो भीषण दुर्घटना होना निश्चित हैं ठीक इसी प्रकार किसी भी ग्रह के यकायक रूकने या उल्टे चलने से क्षण मात्र में सृष्टि विनाश की ओर चले जायेगी। जब कोई ग्रह अपनी गति के कारण पीछे की ओर या तेज चलता दिखाई पड़ता हैं तो कहा जाता हैं कि- ग्रह वक्री या मार्गी हो गये। एक उदाहरण हमारे जीवन में अक्सर देखने को मिलता हैं जब हम ट्रेन में सफर करते हैं और ठीक उस के पास से एक ओर ट्रेन चल रही हो और उस ट्रेन की गति हमारी ट्रेन की गति से कुछ कम हो तो हमें लगता हैं कि पास वाली ट्रेन पीछे की ओर जा रही हैं जबकि वास्तव में ऐसा नहीं होता। यह एक प्राकृतिक नियम हैं कि कोई ग्रह जब सूर्य या पृथ्वी से तुलनात्मक रूप से निकट स्थिति में आ जाता हैं तो उसकी गति तेज हो जाती हैं।
1. फलदीपिका के अनुसार According to Phaldeepika:-
"वक्रं गतो रूचिररशिसमूह पूर्णो नीचारि - भांश - सहितोऽपि भवेत्स खेहः। वीर्यान्वितस्तु हिनरश्मिरिवोच्च-मित्र स्वक्षेत्रगोऽपि विबलो इत - दिधितिश्चेत् "।।
Vakree grahon vakree grahon ka prabhaav: अर्थात् चाहे ग्रह नीचे राशि में या नीचे अंश में हो यदि व सुन्दर किरण समूहों से परिपूर्ण हैं तो वह बली समझा जाना चाहिये यदि कोई ग्रह उच्च, मित्र या स्वराशि हैं और अस्त हैं तो उस कमजोर समझना चाहिये। तात्पर्य यह हैं कि- चन्द्रमा चाहे वृषभ या कर्क के ही क्यों ना हो यदि वह अमावस्या के हैं तो वह निर्बल ही समझे जायेंगे । परन्तु चाहे वह वृश्चिक के नीच राशि के या शत्रु राशि के ही क्यों ना हों यदि वह पूर्णिमा के हैं तो वह बली समझे जायेंगे । यही सिद्धान्त वक्री ग्रहों पर लागू करना चाहिये ।
2. सारावली ग्रन्थ के अनुसार According to Saravali granth:-
"वक्रिणस्तु महावीर्याः शुभाराज्यप्रदा ग्रहाः। पापा व्यसनिनां पुंसां, कुर्वन्ति च वृथाटम्" ।।
Vakree grahon vakree grahon ka prabhaav: अर्थात शुभ ग्रह वक्री होकर अति शुभ हो जाते हैं तथा राज्यसुख देते हैं पापग्रह वक्री होने पर जातक को व्यसनी दुःखदायी व वृथा घूमने वाला आवारा बना देते हैं। हमें फलित करते समय वक्री ग्रहों के अनुकूल व प्रतिकूल दोनों प्रभावों पर ध्यान देना चाहिये। ग्रहों के वक्रत्व काल में देशों पर भी असर आता हैं। जब गोचर दो ग्रह वक्री होते हैं तो राजाओं में क्षोभ की वृद्धि और तीन ग्रह वक्री होते हैं तो लड़ाई, अति वृष्टि, बाढ़ तूफान का भय। जिस समय चार ग्रह वक्री होते हैं तो राज्यभंग और पांच ग्रह वक्री होने पर राज्य व राष्ट्र की बड़ी घटनाएं देखने को मिलती है ।
नोटः-'इस लेख में दी गई जानकारी, सामग्री, गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, धार्मिक मान्यताओं, धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं।
CONCLUSION- आज हमनें हमारें लेख-वक्री ग्रहों-वक्री ग्रहों का प्रभाव Vakree grahon vakree grahon ka prabhaav माध्यम से जाना कि- वक्री ग्रह किस प्रकार से जातक की कुण्डली में विद्यमान हो कर उसके जीवन में उतार चढ़ाव के लियें जिम्मेदार होते हैं।
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