मर्यादा पुरुषोत्तम राम Maryada Purushottam Ram...
पाठकों आज हम हमारें लेख में श्रीराम! के बारें में जानेंगे मर्यादा पुरुषोत्तम राम! Maryada Purushottam Ram श्रीराम! "लोक मर्यादा के परम आदर्श हैं" "अमूर्त धर्म के मूर्त स्वरूप" भी हैं ''भगवान रामो विग्रहवान धर्मः!'' वास्तव में श्रीराम में सहज ही वे समस्त गुण उपलब्ध हो गये जिन्हें धारण कर मनुष्य मर्यादा पुरुषोत्तम राम की श्रेणी में पहुँचता हैं। 1. धर्म, 2. अमितयश, 3. श्री! सम्पूर्ण 4. ऐश्वर्य " अणिमा, लघिमा, महिमा, व्याप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व, वशित्व, प्राप्ति या कामवशायित्व आदि सम्पदयें अथवा सिध्दियाँ " 5. ज्ञान तथा 6. वैराग्य, छःओं गुण जिस व्यक्ति में हो वह भगवान कहलाता हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम Maryada Purushottam Ram...
Maryada Purushottam Ram: यही कारण हैं कि राम की जीवनकथा अमर बन गई। भारत के तीन ओर "महासागर" तथा उत्तर में विश्व का सबसे ऊँचा पर्वत "हिमालय" हैं। यहाँ श्रीराम का व्यक्तित्व ही महासागर की गहराई तथा हिमालय की ऊँचाई को एक साथ समाहित कर सकता था। भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम राम गम्भीरता में समुद्र के धैर्य में हिमालय के क्रोध में कालाग्नि के और क्षमा में पृथ्वी के सदृश्य हैं। यही कारण हैं कि राम की जीवन-कथा अमर बन गई। भारत के तीन ओर महासागर तथा उत्तर में विश्व का सबसे ऊँचा पर्वत हिमालय हैं यहाँ श्रीराम! का व्यक्तित्व ही महासागर की गहराई तथा हिमालय की ऊँचाई को एक साथ समाहित कर सकता था। त्याग की मर्यादा स्थापित करके वे "मर्यादा पुरूषोत्तम" कहलाये ।
उनका जीवन सार्वजनिक होने के कारण सबके लिये उपयोगी हैं क्योंकि उसमें त्याग हैं त्याग से ही सबके मन को जीता जा सकता हैं। भगवान श्रीराम! का रहन- सहन, आचार- विचार, मिलना- जुलना, बोलना- चलना, उनका विवाह, वनगमन, मैत्री, युद्ध संचालन, विजय, राज्य संचालन तथा उनका परिवार, गुरूजन, प्रजाजन, ऋषि- मुनि, केवट, शवरी, वानर, भालू, गिध्द आदि के साथ व्यवहार, ये सब "आदर्श हैं, मर्यदानुसार हैं, धर्मानुसार हैं"। धर्म की स्थापना तो उनका उद्देश्य था इसलिए यह कहा जाता हैं कि- जीता जागता धर्म देखना हो तो भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जीवन देख लें। विग्रहवान धर्म के समग्र लक्षण भगवान श्रीराम! में पूर्णतः चरितार्थ हैं-
"वेद-स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियमात्मनः।
एतच्चतुर्विधं प्राहुः साक्षाध्दर्मस्य लक्षणम् "।।
माता, पिता, गुरू साक्षात् देवरूप हैं इनके प्रति मनुष्य बुध्दि का परित्याग करके देव- बुध्दि से इनका पूजन- सम्मान होना चाहियें, यह शास्त्रीय मर्यादा हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने यह पूर्णतः चरितार्थ कर दिखाया। हर रामायण यह बोलती हैं:-
1. श्रीराम राज्य Shri Ram Rajya:-
Maryada Purushottam Ram: जो रामराज्य नास्तिक लोगों को भी अति लोकप्रिय लगता हैं उसमें सब लोग दैहिक, दैविक तथा भौतिक तापों से मुक्त थे "साधुमत, लोकमत, राजनीति तथा निगम का समादर था"। नीति, प्रिति, स्वार्थ तथा परमार्थ का निर्वाह भगवान श्रीराम ही कर सकें-
"नीति प्रिति परमारथ स्वारथु। कोउन राज समजान यथारथु।। ( अयोध्या. २५४/५ )
विषमता समाप्त हो गई थी बयरू न कर काहू सन कोई।
राम प्रताप विषमता खोई"।। ( उत्तर.२०/८ )
2. राज और प्रजाजन Raj aur Prajajan:-
श्रीराम! अपने प्रजाजनों को अपने परिवार के सदस्य की भाँति ही मानते थे। सदैव उनकी कुशलता पूछते रहतें थे-"पौरान् स्वजन वन्नित्यं कुशलं परिपृच्छति"। ( वा.रा.अयो.२/३८ )
3. राम और राष्ट्र Ram and Nation:-
महात्मा वशिष्ठ कैकेयी को समझाते हैं:-
"नहि-तद् भविता राष्ट्रं यत्र रामो न भूपतिः।
तद् वनं भविता राष्ट्रं यत्र रामो निवत्स्यति"।।
वह राष्ट्र राष्ट्र नहीं रहेगा वन हो जायेगा जिस राष्ट्र के राष्ट्रध्यक्ष राम न होंगे। सारांश यह कि- जिन असामान्य विशेषताओ तथा आदर्शों अथवा जीवन मूल्यों से भारत की अमरता बनीं हैं। राम उनके प्रतीक हैं या यों कहिये- कि भारत की अमरता के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम राम! का नाम जुड़ा हैं।
नोटः-'इस लेख में दी गई जानकारी सामग्री गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं हैं। सूचना के विभिन्न माध्यमों ज्योतिषियों पंचांग प्रवचनों धार्मिक मान्यताओं धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं।
CONCLUSION- आज हमनें हमारे लेख- मर्यादा पुरुषोत्तम राम Maryada Purushottam Ram के माध्यम से जाना कैसे पुरुष राम के गुणों को अपना कर भगवान का दर्जा प्राप्त कर सकता हैं।
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