महालक्ष्मी की साधन- Mahalaxmi Ki Sadhana...

आज हम हमारे लेख में महालक्ष्मी की साधना Mahalaxmi Ki Sadhana: कैसे की जायें के बारें में आप सब को हमारें इस लेख के माध्यम से बतायेंगे- यू तो महालक्ष्मी की साधना के हमारे ग्रन्थों में बहुत से नाना उपाय समझायें गयें हैं किन्तु हम उनमें से जो सरल उपाय हैं उनके बारें में जानेंगे तो आयें जानतें हैं कि- महालक्ष्मी की साधना Mahalaxmi Ki Sadhana कैसे की जायें-

Mahalaxmi Ki Sadhana

महालक्ष्मी की साधन- Mahalaxmi Ki Sadhana...

1. महालक्ष्मी उत्पत्ति कथा:-

रोटी, कपड़ा व मकान ये तीनों व्यक्ति जीवन के लिये महत्वपूर्ण विषय हैं, जिनकी प्राप्ति के लिये व्यक्ति सदा प्रयासरत रहता हैं। धन प्राप्त करने के लिये व्यक्ति पथ भ्रष्ट तक हो जाता हैं। उपरोक्त तीनों ही विषय महालक्ष्मी से संबंधित हैं। लक्ष्मी ये धन की देवी हैं यदि इनका आशीर्वाद व्यक्ति को प्राप्त हो तो वह इस नश्र्वर संंसार में आनंद-पूर्वक जीवन व्यतीत करता हैं। 
श्रीविहिन व्यक्ति को पग-पग पर कठिनाईयाँ महसूस होती हैं, जीवन असहज लगने लगता हैं।एक बार की बात हैं जब ''महार्षि दुर्वासा'' के श्राप से 'इन्द्र के साथ त्रिलोकी की श्री नष्ट हो गयी'। यह वह काल था जिस समय यह घटना घटित हुई ठीक दूसरी ओर श्रीहरी! के निर्देश पर समुद्र मंथन चल रहा था। "विष्णु कश्यप अवतार धारण कर उस पर्वत को आधार दे रहे थें" जिसको देवता तथा राक्षसों द्वारा मंथन के रुप में प्रयुक्त किया जा रहा था। मंथन  से सर्वप्रथम क्षीर सागर के गर्भ से कालकूट नामक विष निकला जिसका पान भगवान शंकर ने कर समस्त चराचर को जीवनदान दिया।

Mahalaxmi Ki Sadhana

मंथन के दौरान क्षीर सागर के गर्भ से 13 अमूल्य धरोहर के उपरांत "देवीलक्ष्मीसिन्धुमुता" हुई, उनके रुप से सभी मुग्ध हो गये थे, सभी उनकी कामना करने लगे थे। किसी ने आसन दिया, किसी ने वस्त्र, किसी ने स्नान कराया, किसी ने अग्डधराग दिये "सबने माला, आभरण आदि अपनी उत्कृष्टतम वस्तुओं से सत्कार किया", उन जगद्धात्री ने सबकी सेवाएँ स्वीकार कर लीं हाथ में कमल की माला लेकर वे योग्य पुरुष का वरण करने चली थी।
जिस को भी देखती मन ही मन कहती- ये क्रोधी हैं, ये कुरुप हैं, ये अल्पायु हैं, ये अमग्डलरुप हैं, ये भयानक हैं। देव, दैत्य, गन्धर्व, नाग, यक्ष, किन्न, मानव, ऋषि- यहाँ तक कि लोकपाल और स्वयं सदाशिव को भी स्वयं को लिये उपयुक्त उन्होंने नहीं माना।
तब अंत में देवी लक्ष्मी ने श्रीहरि! को देखा और विचार किया- ये तो मेरी ओर देखते ही नहीं। दोनों हाथों में वरमाला लिये महालक्ष्मी उनकी ओर देखती रहीं उन वनमाली "पद्मपलाश-लोचन" परम पुरुष की ओर- वे समुद्र-मंथन के अपने कार्य में तल्लीन थे, उन्होंने रमा को देखकर भी नहीं देखा, एक ही सर्वगुणाकार अनुकूल पुरुष और वह इतना निरपेक्ष लक्ष्मीजी को तो दूसरा पुरूष दिखता ही न था। 
उन्होंने जयमाला विष्णु जी के गले में डाल दी और सिर झुकाकर खड़ी हो गयीं, विष्णु जी ने अपनी चिर-सहचरी को हृदय में स्थान दिया। भगवान के वक्ष के वामभाग पर जो स्वर्णिम रोमावली आवर्त हैं, क्षु्ति उसे श्रीवत्स! कहती हैं। वहीं महालक्ष्मी का धाम हैं तब पुनः लोक-परलोक को श्री! की प्राप्ति हुई।

2. दीपावली में श्री लक्ष्मी की साधना:-

Mahalaxmi Ki Sadhana: प्रतिवर्ष कार्तिक मास आरम्भ होते ही शीतल वायु के कोमल स्पर्श में मीठी-मीठी सिरहन होनें लगती हैं और मन दीपावली की उमंग में भर उठता हैं, सभी लोग दीपावली के स्वागत की तैयारियां शुरू कर देते हैं, दीपावली पर लक्ष्मी पूजा का अपना ही महत्व हैं। निर्धन हो या धनी सभी वर्गों के लोग दीपावली के दिन महालक्ष्मी की साधन के लिये मूर्ति अवश्य लाते हैं। व्यापारी वर्ग के लिये भी दीपावली बहुत महत्वपूर्ण होती हैं, क्योंकि इस दिन महालक्ष्मी की साधन करके वे नया काम आरम्भ करते हैं।

लक्ष्मी को चंचला! कहा गया हैं, क्योंकि यह किसी एक स्थान पर अधिक समय तक स्थिर नहीं रहती। इसलिए दीपावली पर हर वर्ग के लोग अपने जीवन में लक्ष्मी! आगमन के लिये पूजा-अर्चना करते हैं और सम्पन्न व्यक्ति इसे अपने घर में स्थित रखने के लिये मनाते हैं। दीपावली पर सभी घरों में महालक्ष्मी की साधन लक्ष्मी पूजा की जाती हैं। कुछ घरों में किसी विद्वान पड़ित को बुलाकर लक्ष्मी पूजन कराया जाता हैं। सभी लोग लक्ष्मी पूजन में सफल हो और सभी घरों में लक्ष्मी आ आगमन हो वह भी सम्भव नहीं होता।

3. तांत्रिक की श्री लक्ष्मी की साधना:-

Mahalaxmi Ki Sadhana: कभी-कभी तो लक्ष्मी की पूजा के लिये पूरी से तैयारी स्त्री-पुरुष आकस्मिक विपत्ति के कारण महालक्ष्मी की साधन से वंचित रह जाते हैं। तांत्रिक की दीपावली और पूजन कुछ अलग प्रकार का होता हैं। तांत्रिक दीपावली को कालरात्रि! के रूप में स्वीकार करते हैं, दीपावली की रात में तंत्र साधना का विशेष महत्व हैं, तंत्र द्वारा अनेक लोग इस रात्रि को मनोकामना पूरी करने की चेष्टा करते हैं। उनकी कामना अनेक तरह की हो सकती हैं, कोई जीवन में धन-धान्य से भरपूर होने के लिये दीपावली के दिन तंत्र साधना करता हैं, तो कोई अपने शत्रु को हानि पहुंचाकर अपनी सुरक्षा करता हैं। 
दीपावली पर किसी को हानि पंहुचा कर मनोकामना पूरी करने के लिये तंत्र साधना करना न तो तर्कसंगत हैं और न ही उचित लेकिन हम अपने जीवन में "सुख-समृद्धि, धन-धान्य" की पूर्ति के लिये महालक्ष्मी की साधन के लिये कुछ अनुभूत तांत्रिक साधनों का अवश्य वर्णन करेंगे। 
1. तंत्र द्वारा उपासना का आदिकाल से विशेष महत्व रहा हैं।
2. जन साधारण में तंत्रोक्त लक्ष्मी साधना रहस्यमयी और अलौकिक शक्ति के रूप में व्याप्त रही हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है, कि तंत्र द्वारा लक्ष्मी साधना प्राचीनकाल से जनसाधारण में रहस्य और कौतूहल का विषय रही हैं। 3. यह तांत्रिक लक्ष्मी साधना आपके परिवार के कल्याण और सुख-समृद्धि का द्वार खोलने वाली शुभ रात्रि बन सकती हैं।
दीपावली पर की जाने वाली "सरल साधना जनकल्याण हेतु प्रस्तुत हैं" दीपावली की रात लगभग 12बजे काले ऊनी कम्बल पर बैठकर श्री महालक्ष्मी जी! के चित्र के आगे दीपमाला कम से कम दस दीपक सजा कर बैठ जायें। मंत्र की जितनी मालायें संभव हो निरन्तर जपे इसके बाद 21दिन तक नियम से जप करें, प्रभु ने चाहा तो "चंचला लक्ष्मी" आपके घर में वास करेंगी।

Mahalaxmi Ki Sadhana

 1. मंत्र इस प्रकार हैं-

"ऊँ नमो भगवती पदम पद्मामावती  ऊँ ह्रीं श्रीं ऊँ पूर्वाय दक्षिणाय पशिचमाय उत्तराय  आण पूरय सर्वजन स्वयं कुरु स्वाह"।।
प्रायः देखा गया हैं कि व्यापारी भाईयों का व्यापार प्रायः मंदा रहता हैं या फिर आवागमन बराबर  रहता हैं। ऐसी हालत में व्यापारी वर्ग काफी कुंठा की स्थिति अनुभव करता हैं। ऐसे व्यापारी बंधु हताहत न हों, वह इस क्रिया को स्वयं करें। ताम्रपत्र पर अंकित- श्रीयंत्र! ले लें, उसे शुद्ध कर लें दीपावली की मध्य-रात्रि में निम्न मंत्र की माला निरंतर जपें तत्पशचात अगली प्रातः गंगाजल या कुएँ का ताजा जल लेकर उस पर मंत्र को 21 बार पढ़कर फूंक मार दे, इस अभिमंत्रित जल को दुकान व कार्यालय की चारों दीवारों पर छिड़क दें, ध्यान रहे जल धरती पर न गिरे और वह मंत्र आप लगातार उच्चारण करते रहें। इस विधि विधान के करने पर आप सुख- समृद्धि के भागी होगें।

Mahalaxmi Ki Sadhana

2. मंत्र इस प्रकार से हैं-

"ऊँ ह्रीं क्रों ऐं श्रीं क्लीं ब्लूं सौं रं वें श्रीं ऊँ। ऊँ वं श्रीं वं ऐं श्रीं क्लीं गृहलक्ष्म्यै स्वाहा श्रीं ऊँ"।।
महालक्ष्मी भगवान में नित्य स्थिर, कामलासन गरुडा़सना या ऐरावतारुढा निखिलकल्याणधाम्नी हैं और भगवान को भूलकर जब उनकी आराधना होती है, शास्त्र कहता हैं कि तब वे उलकू वाहन होती हैं। उनका आसन उलकू होता हैं वे चंचला बन जाती हैं।

नोटः-'इस लेख में दी गई जानकारी, सामग्री, गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, धार्मिक मान्यताओं, धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'

CONCLUSION- आज हमनें हमारे लेख- महालक्ष्मी की साधना Mahalaxmi Ki Sadhana के माध्यम से जाना की महालक्ष्मी की उत्पत्ति कैसे हुईं और जाना कि महालक्ष्मी की साधना किस प्रकार कि जायें।

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.