महालक्ष्मी जी की कहानी- Mahalaxmi Ji Ke Kahanee...

आज हम हमारें लेख में एक कहानी के बारें में आपको बतायेंगे जो कि लक्ष्मीजी और एक साहूकार की बेटी थी, वह हर रोज पीपल सींचने जाती थी, पीपल पर लक्ष्मीजी का वास था। एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से कहा तू मेरी सहेली बन जा तब लड़की ने कहा कि मैं अपने पिताजी से पूछकर कल आऊंगी। घर जाकर पिताजी को सारी बात कह दी तो पिताजी बोले वह तो महालक्ष्मी जी हैं सहेली बन जा। दूसरे दिन वह लड़की फिर गई जब लक्ष्मी जी निकल कर आई और कहा सहेली बन जा तो लड़की ने कहा! बन जाऊंगी और दोनों सहेली बन गई!

Mahalaxmi Ji Ke Kahanee

महालक्ष्मी जी की कहानी- Mahalaxmi Ji Ke Kahanee...

Mahalaxmi Ji Ke Kahanee: लक्ष्मी जी ने उसे खाने का न्यौता दिया वह लक्ष्मी जी के जीमने गई लक्ष्मी जी ने उसे शाल-दुशाला ओढ़ने के लिए दिया, रूपये दिये, सोने की चौकी, सोने की थाली में छत्तीस प्रकार का भोजन करा दिया। जीमकर जब वह जानें लगी तो लक्ष्मी जी ने पल्लू पकड़ लिया और कहा! कि मैं भी तेरे घर जीमने आऊंगी तो उसने कहा आ जाना। घर जा कर चुपचाप बैठ गई तब पिता ने पूछा कि बेटी सहेली के यहां जीमकर आ गई ? और तूं उदास क्यों बैठी हैं ? तो उसनें कहा! मेरे को लक्ष्मी जी ने इतना दिया अनेक प्रकार के भोजन कराए परन्तु मैं कैसे जिमाऊंगी अपने घर में तो कुछ नहीं हैं फिर पिता ने कहा- जिमा देंगे परन्तु तू गोबर मिट्टी से चौके की सफाई करा लें। चार मुख का दीया जलाकर लक्ष्मी जी का नाम लेकर रसोई में बैठ जाना। लड़की सफाई कर के चौका दे के बैठी। उसी समय एक रानी नहा रही थी उसका नौलखा हार चिल उठाकर ले जा रही थी इतने में उसे मरा सर्प दिखा तो वह सर्प के पीछे गई और हार वहां डाल गई। उसने हार उठाया वह हार को लेकर बाजार में गई और सामान लाने लगी तो सुनार ने पूछा कि क्या चाहिए ?

Mahalaxmi Ji Ke Kahanee: तब उसने कहा कि- सोने की चौकी, सोने का थाल, शाल दुशाला दे दें, मोहर दें और सारी सामग्री दें। छत्तीस प्रकार का भोजन हो जाए इतना सामान दें। सारी सामग्री लाकर बहुत तैयारी करी और रसोई बनाई तब गणेश जी से कहा कि लक्ष्मी जी को बुलाओ। आगे-आगे गणेशजी और पीछे-पीछे लक्ष्मी आई उसने फिर चौकी डाल दी और कहा- सहेली चौकी पर बैठ जा लक्ष्मीजी ने कहा- सहेली चौकी पर तो राजा रानी के भी नहीं बैठी। साहूकार की बेटी ने कहा कि मेरे यहां तो बैठना पड़ेगा। फिर गणेश, लक्ष्मी जी चौकी पर बैठ गए तब उसने बहुत खातिर की और जिमाया, लक्ष्मीजी उससे प्रसन्न हो गई। घर में खूब रुपया एवं लक्ष्मी हो गई। साहूकार की बेटी ने कहा- मैं अभी आ रहीं हूँ। तुम यहीं बैठी रहना और वह काम करने लगी लक्ष्मी जी गई नहीं और चौकी पर बैठी रही उसका इन्तजार करती रही। घर में धन का भण्डार भर गया हे लक्ष्मी! जी जैसा तुमने साहूकार की बेटी को दिया वैसा सबको देना कहते सुनते! हुंकार- भरते अपने सारे परिवार को देना, पीहर में देना, सुसराल में देना, बेटे पोते को देना, हे लक्ष्मी माता! सबका कष्ट दूर करना सबकी मनोकामना पूर्ण करना।

नोटः-'इस लेख में दी गई जानकारी, सामग्री, गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, धार्मिक मान्यताओं, धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। 

CONCLUSION- आज हमनें हमारें लेख- महालक्ष्मी जी की कहानी Mahalaxmi Ji Ke Kahanee के माध्यम से आपको बताया कि किस प्रकार महालक्ष्मीजी ने अपनी सहेली को धन धन्य से सम्पन्न कर दिया।

1 टिप्पणी:

  1. I have read many stories of our respected Hindu's gods, but this story of Laxmimaa depicted and explained in very simplistic yet very impressive language is commendable.

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