Jain Dharm ke Devatv Kee Avadharana Bhag Pratham...

आज हम हमारें लेख में जैन धर्म के देवत्व की अवधारणा Jain Dharm ke Devatv Kee Avadharana के माध्यम से जानेंगे की मुक्त आत्मा के पास "अनंत आनन्द" "अनंत शक्ति" "अनंत ज्ञान" और "अनंत दृष्टि हैं"। यह जीव जैन धर्म में देवत्व या देवता हैं प्रत्येक जीव में ईश्वर बनने की शक्ति या क्षमता होती हैं अत: जैन धर्म में एक ईश्वर नहीं होता किन्तु जैन देवता असंख्य होतें हैं जैन धर्मानुसार देवताओं की संख्या बढ़ रही हैं क्योंकि अधिक जीवित प्राणी मुक्ति प्राप्त करते हैं। 

Jain Dharm ke Devatv Kee Avadharana Bhag Pratham

Jain Dharm ke Devatv Ke Avadharana Bhag Pratham...

1, जैन धर्म में अवधारणाओं के प्रकार Types of Concepts in Jainism:-

Jain Dharm ke Devatv: जैन धर्म में अवधारणायें तीन प्रकार की होती हैं - प्रथम "व्यवहारिक" द्वितीय "वैज्ञानिक" तृतीय "शास्त्रीय" व्यवहार प्रतिबद्ध और अप्रतिबध्द दोनों प्रकार का हो सकता हैं, मनुष्य की प्रकृति अनुसंधान की हैं, वह शास्त्र, विज्ञान और व्यवहार सबको अपने चिंतन-मनन का विषय बना लेता है। शास्त्रों की परम्परा बहुत प्राचीन हैं, आधुनिक विज्ञान का इतिहास बहुत प्राचीन नहीं हैं, शास्त्रों में जो वैज्ञानिक तत्त्व हैं, उनको शाशवत माना जा सकता हैं। 

Jain Dharm ke Devatv: प्रथम- व्यवहारिक अवधारणाओं में प्राचीनता और नवीनता का मिश्रण हैं। द्वितीय- विज्ञान अपनी विरासत के आधार पर आगे बढ़ता हैं, उस पर किसी भी धर्म या दर्शन का विशेष अधिपत्य नहीं होता। तृतीय- शास्त्रीय अवधारणाओं के साथ धर्मों एवं दर्शनों की परम्परा जुड़ी रहतीं हैं। जैन धर्म के देवत्व में आत्मवादी दर्शनों मे आत्मा-दर्शन के क्षेत्र में दो धाराएँ चल रही हैं। आत्मवादी और अनात्मवादी, अनात्मवादी दर्शन आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते। आत्मा का अस्वीकार कर्म, कर्मबंध और बन्धन के हेतुओं का अस्वीकार हैं। बन्धन के अभाव में मोक्ष और मोक्ष के उपायों की प्रासंगिकता समाप्त हो जाती हैं।

अनात्मवादी व्यक्तियों के लिये पूर्वजन्म की आस्था अर्थशून्य हो जाती हैं। ऐसे व्यक्ति इस दृश्य जगत से परे किसी चेतन सत्ता में विश्र्वास नहीं करते। आत्मवादी दर्शन ने आत्मा के स्वतंत्र अस्तित्व को स्वीकार किया हैं। आत्मा के सम्बंध में उनकी अवधारणाएँ भिन्न-भिन्न हो सकती हैं, पर उसके अस्तित्व को लेकर कोई व्रिप्रतिपत्ति नहीं है। कुछ दार्शनिक आत्मा को "अगुङष्ठ-प्रमाण" मानते हैं, कुछ "तन्दुल-प्रमाण" मानते हैं, कुछ "लोक-प्रमाण" मानते हैं और कुछ "शरीर-प्रमाण" मानते हैं। इन मान्यताओं की समीक्षा अभी यहाँ प्रासंगिक नहीं हैं।

Jain Dharm ke Devatv Kee Avadharana

2. जैन धर्म में आत्मा के रूप Form of Soul in Jainism:-

Jain Dharm ke Devatv: आत्मा में उसके दो रुप हैं- "शुध्द आत्मा और अशुद्ध आत्मा"। शुध्द आत्मा परमात्मा हैं, वह जन्म-मृत्यु की परम्परा से मुक्त हैं। अशुद्ध आत्मा-संंसार में परिभ्रमण करती हैं, परिभ्रमण के मुख्य स्थान चार प्रकार के हैं- "नरकगति" "तिर्यञ्चगति" "मनुष्यगति" और "देवगति"। जैन-शास्त्र की अवधारणा के अनुसार यह लोक तीन भागों में विभक्त हैं- ऊध्रर्व लोक, तिर्यक् लोक और अधोलोक। निम्र लोक- में मुख्य रूप से नरक गति के जीव रहते हैं। तिर्यक् लोक- में मनुष्य और तिर्यच्ञों की अवस्थित हैं। ऊर्ध्व लोक- में देवताओं का निवास हैं। यह वर्गीकरण स्थूल दृष्टि से हैं, सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाय तो तिर्यच्ञ गति के जीवन इस समूचे लोक मे परिव्याप्त हैं, मनुष्य तिर्यक् लोक तक सीमित हैं, देवताओं का अस्तित्व तीनों लोकों में हैं।

FAQ-

1. जैन धर्म में देवता कौन हैं ? 

यू तो जैन धर्म इस ब्रहमाण्ड की अभिव्यक्ति, निर्माण अथवा रखरखाव के लियें जिम्मेदार किसी निर्माता ईश्वर की अवधारणा को खारिज करता हैं, किन्तु जैन धर्म में देवता या भगवान के रूप में 1. अरिहंत केवली और 2. सिध्द मुक्त आत्माएँ ये जैन धर्म के रूप में हैं। 

2. जैन धर्म की भाषा कौन सी हैं ? 

यू तो जैन साहित्य बहुत बड़ा व बहुत विशाल हैं अधिकांश वह धार्मिक साहित्य ही हैं जोकि संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में लिखित हैं। भगवान महावीर स्वामी का केंद्र मगध रहा हैं। इसलिए उन्होंने यहाँ की लोकभाषा अर्धमागधी में अपना उपदेश दिया जो उपलब्ध जैन आगमों में सुरक्षित हैं। इसलिए कोई एक भाषा पर जैन धर्म नहीं रूका

Jain Dharm ke Devatv

नोटः-'इस लेख में दी गई जानकारी, सामग्री, गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, धार्मिक मान्यताओं, धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। 

CONCLUSION- आज हमनें हमारें लेख- Jain Dharm ke Devatv Kee Avadharana Bhag Pratham के माध्यम से जाना कि प्रत्येक जीव में देवत्व या देवता हैं और प्रत्येक जीव में ईश्वर बनने की शक्ति या क्षमता होती हैं।

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