गंगा देवी का देवत्व-Ganga Devi Ka Devatv...

आज हम हमारें लेख गंगा देवी का देवत्व-Ganga Devi Ka Devatv के माध्यम से जानेंगे कि जिस तरह आर्य- संस्कृति में गौमाता की जो प्रतिष्ठा हैं, वह समन्वित देवनदी गंगा में विधमान हैं। महाभारत में इसे "त्रिपथगामिनी" वाल्मीकीय रामायण में "त्रिपथगा" और "रघुवशं" तथा "कुमारसंभव" में एवं "शाकुन्तल" नाटक में "त्रिस्त्रोता" कहा गया हैं- गङ्गा त्रिपथगा नाम दिव्या भागीरथीति च ।त्रीन् पथो भावयन्तीति तस्मात् त्रिपथागा स्मृता ।। ( व. रा.१/४४/६ )

गंगा देवी का देवत्व-Ganga Devi Ka Devatv...

गंगा देवी का देवत्व-Ganga Devi Ka Devatv...

Ganga Devi Ka Devatv: यह "त्रिपथगा स्वर्गलोक, मृत्युलोक और पाताललोक को पवित्र करती हुई प्रवाहित होती हैं"। "विष्णुधर्मोत्तरपुराण" में गङ्गा (गंगा ) को "त्रैलोक्यव्यापिनी" कहा गया हैं-"ब्रह्मन् विष्णुपदी गङ्गा त्रैलोक्यं व्याप्य तिष्ठति" "शिवस्वरोदय में इडा नाडी को गङ्गा (गंगा ) कहा गया हैं"। पुराणों में गङ्गा को (गंगा ) "लोक माता" कहा गया हैं- पापबुध्दिं परित्यज्य गङ्गायां लोकमातरि। स्न्ननं कुरुत हे लोका यदि सद्गतिमिच्छथ।। (पद्मपु. ७/९/५७ )

"तैत्तिरीय आरण्यक" तथा "कात्यायन श्रौतसूत्र" में गङ्गा (गंगा ) का उल्लेख हुआ हैं। वेदोत्तर काल में गङ्गा को अत्यधिक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई हैं। पुराणों में गङ्गा के प्रति अतिशय पूज्य भाव किया गया हैं। वाल्मीकीय रामायण के अनुसार गङ्गा की उत्पत्ति हिमालय पत्नी मैना से बतायी गई हैं। गङ्गा उमा से ज्येष्ठ थीं, पूर्वजों के उद्वार के लिये भागीरथ ने अत्यधिक कठोर तप किया ब्रह्माजी! भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गये। गङ्गा को धारण करने के लिये भगीरथ ने अपने तप से भगवानशंकर! को सन्तुष्ट किया। एक वर्ष तक गङ्गा उनकी ही जटाओं में भटकती रहीं। अन्त में प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने एक जटा से गङ्गा की धारा को छोड़ा। देव नदी गङ्गा भगीरथ के पीछे-पीछे कपिल मुनि के आश्रम में गयीं एवं उन्होंने सगर पुत्रों का उद्धार किया। देवी भागवतपुराणानुसार भगवानविष्णु! की तीन पत्नियाँ थी। कलह के कारण परस्पर शापवश गङ्गा (गंगा ) और सरस्वती को नदी रूप में पृथ्वी पर आना पड़ा। गङ्गा अवतरित होकर पतितपावनी बनीं-
"गङ्गे यास्यसि पश्चात्त्वमंशेन विश्वपावनी।। भारतं भारती शापात् पापदाहाय पापिनाम्।  भगीरथस्य तपसा तेज नीता सुकल्पिते"।। ( देवी भा. ९/६/४९-५० )

सत्यवती नृप हरिश्चन्द्र के वंश में आठवीं पीढ़ी में सगर का जन्म हुआ था। काशी में गङ्गा (गंगा ) के घाट पर वर्तमान हरिश्चन्द्र घाट पर राजा हरिशचन्द्र ने चाण्डाल का दास्यकर्म किया था। कुछ लोगों का तर्क हैं कि पूर्व में ही विधमान गङ्गा को भगीरथ क्यों लायें ? अस्तु, स्कन्द पुराण के श्र्लोकों से उपर्युक्त, शंका का समाधान हो जाता हैं-"त्रयाणामपि लोकनां हिताय मंहते नृपः। समानैषीत्ततो गङ्गा यत्रासीन्मणिकर्णिका।। प्रागेव मुक्तिः संसिद्धा गङ्गा सङ्गात् ततोअधिका। यदा प्रभृति सा गङ्गा मणिकण्यं समागम"।। (स्कन्द़ काशी. ३०/3,9 )

Ganga Devi Ka Devatv: तीनों लोकों के महान कल्याण के लिये राजा भगीरथ गङ्गा (गंगा ) को पृथ्वी पर लाये, जहाँ सबको मुक्ति प्रदान करने वाली मणिकर्णिका पहले से ही विराजमान थी। अब गङ्गा के आ जाने से उसका प्रभाव और अधिक बढ़ गया। इस प्रकार स्कन्द पुराण के श्र्लोक से सुस्पष्ट हैं कि वाराणसी में गङ्गा-आगमन के पूर्व मणिकर्णिका अवस्थित थी। श्रीमद्भगवत! के पचंम स्कन्धानुसार राजा बलि से तीन पग पृथ्वी नापने के समय भगवान वामन का बायाँ चरण ब्राह्मण्ड के ऊपर चला गया। वहाँ ब्रह्मा जी के द्वारा भगवान के पाद प्रच्छालन के बाद उनके कमण्डलु में जो जलधारा स्थित थी, वह उनके चरण स्पर्श से पवित्र होकर ध्रुवलोक में गिरी और चार भागों में विभक्त हो गयीं- 1. सीता, 2. अलकनन्दा, 3. चक्षु, 4. भद्रा। 

1. सीता- ब्रह्मलोक से चलकर गन्धमादन के शिखरों पर गिरती हुई पूर्व दिशा में चली गई। 2. अलकनन्दा- अनेक पर्वत शिखरों को लाँघती हुई हेमकूल से गिरती हुई दक्षिण में भारतवर्ष चली गयी। 3. चक्षु- नदी माल्यवान् शिखर से गिरकर केतुमाल वर्ष के मध्य से होकर पश्चिम में चली गयीं। 4. भद्रा- नदी गिरि शिखरों से गिरकर उत्तर कुरु वर्ष क मध्य से होकर उत्तर दिशा में चली गयीं। 

नोटः-'इस लेख में दी गई जानकारी, सामग्री, गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, धार्मिक मान्यताओं, धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। 

CONCLUSION- आज हमनें हमारे लेख- गंगा देवी का देवत्व Ganga Devi Ka Devatv के माध्यम से की गंगा देवी का हमारे जीवन में कितना महत्व हैं वह मात्र एक नदी नहीं वह कलयुग काल में मानव कल्याण के लियें अवतरित हुईं हैं।

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