देव एवं देव उपासना- Dev evan dev upaasana...

आज हम हमारें लेख में देव एवं देव उपासना Dev evan dev upaasana कैसे की जायें पर लेख में चर्चा करेंगे क्योंकि भारतवासियों के जीवन में देवताओं का एक महत्वपूर्ण स्थान होता हैं, उपनिषदों के अनुसार देवताओं की संख्या तैंतीस कोटि मानी गईं हैं, जो उनकी महिमा का प्रतिपादक हैं, अत: प्रायः तैंतीस ही देवता बतायें गयें हैं-

Dev evan dev upaasana

देव एवं देव उपासना- Dev evan dev upaasana...

"यस्य त्रयस्त्रिंशद-्देवा अग्ङे मात्रा विभेजिरे। तान् वै त्रयस्त्रिंशद् देवाने के ब्राह्मविदो विदुः"।। अथर्ववेद १०/७/२७ 

Dev evan dev upaasana: जिस परमात्मा के अग्ङ- प्रत्यग्ङों में तैंतीस देवता अवयव रूप से विभक्त होकर विद्यमान हैं, उन तैंतीस देवताओं को ब्रह्मवेता ज्ञानी पुरूष ही जानते हैं। "विष्णु पुराण ( ३/१/46 ) में सम्पूर्ण देवता, समस्त मनु तथा सप्तर्षि, मनु-पुत्र व इन्द्र, श्री हरि की विभूति हैं", ऐसा बताया गया हैं-

"सर्वे च देवा मनवः समस्ताः सप्तर्षयो ये मनुसूनवश्च। इन्द्श्च यो अयं त्रिदशेशभूतो विष्णेरशेषास्तु विभूतयस्ताः"।।

देवता अनुग्रह करने, इच्छा पूर्ति करने और दण्ड देने में समर्थ हैं। मानव अपने उत्कृष्ट कर्मो से देवत्व प्राप्त कर सकता हैं। "सौ अश्वमेध यज्ञ" करने वाला व्यक्ति "इन्द्रपद" प्राप्त कर लेता हैं। "जड़वादी नास्तिक पृथ्वी, जल, सूर्य, चन्द्रमादि को जड-परमाणुओं के समुदाय से निर्मित पिण्डमात्र मानते हैं, परन्तु यह ठीक नहीं हैं"। वस्तुतः जड़-चेतन सभी पदार्थ का "अधिष्ठातृ-शक्ति" का नाम देवता हैं। पृथ्वी, जल, वायु,अग्नि, सूर्य, चन्द्र आदि नाना शक्ति सम्पन्न परमात्मा के ही चेतन-रूप हैं। श्रीमद्-भागवत-( २/३/२-१० ) में विभिन्न कामनाओं के उद्देश्य से विभिन्न देवताओं की उपासना का उल्लेख मिलता हैं -

"ब्राह्मवर्चसकामस्तु यजेत ब्राह्मणस्पतिम् । इन्द्रमिन्द्रियकामस्तु प्रजाकामः प्रजापतीन् ।।

देवीं मायां तु श्रीकामस्तेजस्कामो विभावसुम् । वसुकामो वसून् रूद्रान् वीर्यकामोअथ वीर्यवान् ।।

अन्नद्मकामस्त्वदितिं स्वर्गकामोअदितेः सुतान् ।। विश्चान् देवान् राज्यकामः साध्यान् संसाधको विशाम् ।।

आयुष्कामोअश्चिनौ देवौ पुष्टिकाम इलां यजेत् । प्रतिष्ठाकामः पुरूषो रोदसी लोकमतरौ"।।

Dev evan dev upaasana: ब्राह्मतेज के इच्छुक को "बृहस्पति" की, इन्द्रिय शक्ति के इच्छुक को इन्द्र की, संततिकामी को "प्रजापतियों" की, लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये "माया देवी" की, तेज के लिये "अग्नि" की, धन के लिये "वसुओं" की और वीरता प्राप्ति के लिये "रूद्रों" की, प्रचुर धान्य की कामना करने वाले को "अदिति" की, स्वर्गकामी को "अदितिपुत्र" देवताओं की, राज्यकामी को "विश्चदेवों" की तथा प्रजा को स्वानुकूल बनाने की इच्छा रखने वाले को "साध्य देवताओं" की, दीर्घायुकामी- को "अश्चिनीकुमारों" की, पुष्टिकामी को "पृथ्वी" की, प्रतिष्ठाकामी को "पृथ्वी व आकाश" की आराधना करनी चाहिये।

"रूपाभिकामो गन्धर्वान् स्त्रीकामोअप्सरउर्वशीम् । आधिपत्यकामः सर्वेषां यजेत परमेषिनम् ।। 

यज्ञं यजेद् यशस्कामः कोशकामः प्रचेतसम् । विद्याकामस्तु गिरिशं दाम्पत्यार्थ उमां सतीम् ।

धर्मार्थ उत्तमल्श्रोकं तन्तुं तन्वन् पितृन् यजेत् । रक्षाकामः पुण्यजनानोजस्कामो मरूद्गणान् ।।

राज्यकामो मनून् देवान् निर्ऋतिं त्वभिचरन् यजेत् । कामकामो यजेत् सोममकामः पुरूषं परम् ।।

अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः । तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरूषं परम्" ।।

Dev evan dev upaasana: सौन्दर्यकामी को "गन्धर्वों" की, सुभगा पत्नी के लिये "उर्वशी-अप्सरा" की और सबका स्वामी बनने के लिये "ब्रह्माजी" की, यज्ञकामी को "यज्ञपुरूष" की, कोषकामी को "वरूण" की, विद्याकामी "भगवान शिव" की तथा पति-पत्नी में प्रेम बनाये रखने के लिये "भगवती पार्वती" की, धर्म-सम्पादनार्थ "भगवान श्री हरि" की, वशंपरम्परा की रक्षा के लिये "पितरों" की, बाधाओं से बचने के लिये "यक्षों" की और बलवान बनने के लिये "मरूद्गणों" की, राज्य के लिये "मन्वन्तराधिप देवों" की, अभिचार के लिये "निर्ऋति" की, भोग प्राप्ति के लिये "चन्द्रमा" की और निष्कामता-प्राप्ती के लिये "भगवान श्रीहरि" की उपासना करनी चाहिये ।

Dev evan dev upaasana

Dev evan dev upaasana: उदार बुध्दि वाले मोक्षकामी पुरूष को तो चाहे वह सकाम हो अथवा निष्काम, तीव्र भक्ति एकमात्र भगवान पुरूषोत्तम की ही आराधना करनी चाहियें। भिन्न-भिन्न कामनाओं की पूर्ति देवताओं की पूजा करने से होती हैं। प्रत्येक जीव का स्वभाव भिन्न- भिन्न होता हैं। उस स्वभाव के अनुसार जो अन्तः करण में भिन्न- भिन्न देवताओं के पूजन करने की भिन्न- भिन्न इच्छा उत्पन्न होती हैं, उसी को उससे प्रेरित होना कहते हैं। सत्व, रज आदि भिन्न प्रकृतियों तथा रूचि-भेद के कारण प्राणियों की अपने अनुरूप विभिन्न इष्टदेव की उपासना में रूचि होती हैं। तदनुसार- ही वह उपासना करके सिध्दि- लाभ करता हैं। "श्रीमद्भगवतगीता" में इसी भाव को भगवान श्रीकृष्ण! स्वयं अपने श्रीमुख! से इस प्रकार प्रकट करते हैं-

"यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रध्दयार्चितुमिच्छति । तस्य तस्याचलां श्रध्दांतामेव विद्-धाम्यहम्" ।। ( ७/२१ )

Dev evan dev upaasana: जो जो सकाम भक्त जिस- जिस देवता के स्वरूप को श्रद्धा से पूजना चाहता हैं, उस- उस भक्त की श्रध्दा को मैं उसी देवता के प्रति स्थिर करता हूँ । जीव भगवान का ही अशं हैं। भगवान एक ओर तो उसकी कामनाओं की पूर्ति करते हैं तथा दूसरी ओर उसे इस सांसारिक प्रपञ्च से मुक्ति भी दिलाते हैं।

अतः उन्होंने भूभुर्वः स्वः आदि ऊध्र्वलोकों तथा अतल, वितल, सुतलादि निम्र लोकों के माध्य में जीवलोक को प्रतिष्ठित किया हैं और इन लोकों की उत्तरोत्तर ऊध्र्वगामी अथवा अधोगामी अवस्थिति से मानव को बताया हैं कि वह यदि अच्छा कर्म करेगा तो देवत्व को प्राप्त करेगा तथा निन्दित कर्म करेगा तो अधोलोकगामी होगा । अतः देवोपासना आदि सात्त्विक कर्मो के द्वारा आत्म- कल्याण की प्राप्ति करनी चाहियें । 

FAQ-

1. उपासना का अर्थ क्या हुआ ? 

प्रायः सभी धर्मों में उपासना का अर्थ अलग अलग होता हैं, किन्तु सनातन धर्म में उपासना से अभिप्राय: अपने इष्ट देवता के समीप "उप" स्थिति "आसन" बैठना अर्थात अपने ईष्ट देवता के समीप या स्थिति में बैठना ये उपासना का अर्थ होता हैं।

2. पूजा और उपासना में क्या अन्तर हैं ? 

पूजा और उपासना में कोई अन्तर नहीं हैं, किन्तु ये एक दुसरे के प्रयावाचीं शब्द जरूर हैं।

3. उपासना और साधना में क्या अन्तर हैं ? 

एक निश्चित संकल्प के साथ किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लियें, एक निश्चित समय तक पूजा-अर्चना के नियम के साथ आराधना करना साधना कहलाता हैं। हिन्दू सनातन धर्म में अनेकों पर्व और व्रत मनायें जातें हैं, इस दौरान उपवास के साथ अपने इष्ट देव या इष्ट भगवान की पूजा-अर्चना करना उपासना कहलाता हैं।

4. उपासना और साधना करने वाला क्या कहलाता हैं ? 

1. उपासना करने वाला- उपासक और 2.साधना करने वाला- साधक  कहलाता हैं।

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5. सूर्य उपासना से क्या होता हैं ? 

1. सूर्य देव की उपासना करने से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता हैं। 2. देवी शक्तियों से सुरक्षा का वरदान प्राप्त होता हैं।3. भगवान शिव से बुद्धि व ज्ञान प्राप्त होता हैं। 4. अग्निदेव से सुख-समृद्धि प्राप्त होती हैं। 5. देवी सरस्वती से कला व विध्या प्राप्त होती हैं।

6. उपासना कैसे की जाती हैं ? 

हिन्दू सनातन धर्म में उपासना का शब्दार्थ- अपने इष्टदेव के समीप 'उप स्थिति बैठना 'आसन' आचार्य शंकराचार्य की व्याख्या के अनुसार "उपास्य वस्तु को शास्त्रौक्त विधि से बुद्धि का विषय बनाकर, उसके समीप पहुँचकर, तैल धारा के सदृश समानवृत्तियों के प्रवाह से दीर्घकाल तक उसमें स्थिर रहने को उपासना कहतें हैं- {गीता: 1. 2. 3 - शांकर भाष्य}

नोटः-'इस लेख में दी गई जानकारी, सामग्री, गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, धार्मिक मान्यताओं, धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'

CONCLUSION:- आज हम हमारें लेख में देव एवं देव उपासना Dev evan dev upaasana कैसे की जायें पर लेख में चर्चा की-

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